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________________ सिद्ध-सारस्वत अर्थात् इस परिवर्तनशील संसार में असंख्य प्राणियों का निरंतर जन्म-मरण होता है लेकिन मनुष्य पर्याय को प्राप्त करना उसी का सार्थक है जिसने अपनी जाति, वंश एवं समाज की उन्नति की हो। ऐसे ही नवरत्नों में परम आदरणीय डॉ. सुदर्शन लाल जैन जी हैं, जिनका आदर्श जीवन एवं उनका रचनात्मक कार्य समाज के समक्ष अनुकरणीय है। 'गुणाः सर्वत्र पूज्यन्ते' - श्रद्धेय मामाजी डॉ. सुदर्शनलाल जैन बचपन से ही मेधावी तथा विनम्र छात्र रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र की सर्वश्रेष्ठ उपाधि पी-एच.डी. संस्कृत विषय में प्राप्त करके राष्ट्र की जननी भाषा के प्रति उन्होंने अपनी अगाध निष्ठा का परिचय दिया है। भारत भूमि में स्थित शिक्षा की तपोभूमि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय को अपनी कर्म-भूमि बनाकर लम्बे अरसे तक ज्ञान-पिपासु बटुकों को ज्ञान-रश्मि से अलोकित किया है। उनके इसी समर्पण भाव को देखते हुए उन्हें देश-विदेश में अनेकों सम्मान प्राप्त हुये। देश का सर्वश्रेष्ठ सम्मान राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त कर आपकी ख्याति सर्वत्र विकीर्ण हुई। आपका समग्र जीवन साहित्य-साधना का प्रतीक है। आप हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत एवं अंग्रेजी आदि के उच्चकोटि के विद्वान् हैं। इन्होंने अनेक ग्रन्थों का लेखन, अनुवाद, प्रकाशन, संस्कृत एवं हिन्दी में करके समाज का जो उपकार किया है वह कभी भुलाया नहीं जा सकता है। अपनी तीनों बहिनों के प्रति आपा अगाध प्रेम रहा है। हम सभी उनके उत्तरोत्तर प्रगति की कामना करते हैं। आपका शिक्षानुराग समाज में सतत बढ़ता रहे। श्री सुशील कुमार जैन (अब्बी) सपरिवार उपपंजीयक, कार्यालय, जबलपुर 125
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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