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________________ सिद्ध-सारस्वत आपके सम्मान में 'अभिनन्दन ग्रन्थ' के प्रकाशन पर मैं अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित करती हूँ। इसके साथ ही भगवती अन्नपूर्णा एवं बाबा विश्वनाथ से आपके दीर्घायु की कामना करती हूँ। आपकी शिष्या श्रीमती डॉ. जया मिश्रा असिस्टेण्ट प्रोफेसर, आर्य महिला पी. जी. कालेज, वाराणसी स्तुत्य और चिरस्मरणीय व्यक्तित्व सम्मानीय विद्वद्वरेण्य साहित्य मनीषी डॉ. सुदर्शन लाल जी का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है। यह अत्यन्त प्रसन्नता का विषय है, अपने जन्म स्थान मंजुला ग्राम जो कि छोटा सा गाँव सागर जिले में है। वहाँ की मिट्टी में जन्मे श्री सुदर्शनलाल जी 10 माह के अल्पवय में ही उनकी माता जी का साया उनके सर पर से उठ गया। परन्तु ऐसी परिस्थिति में भी उन्होंने अल्पवय से ही निःशुल्क जैन छात्रावासों में रहकर अध्ययन किया एवं संस्कार प्राप्त किये। धार्मिक संस्कार प्राप्त कर देव शास्त्र गुरु की भक्ति कर आज वह बड़े विद्वान् के रूप में विख्यात हैं। उनके परिवार में सब उच्च पदों पर हैं। सभी प्रकार के धार्मिक संस्कारों से ओतप्रोत हैं। ये उनकी देन ही है कि मैं उनके 75 वें वर्ष की बधाई प्रेषित कर रहा हूँ एवं उनकी दीर्घायु की कामना श्री वीरप्रभु से करता हूँ। मैं आपके गुणों का अभिनन्दन करता हूँ कि वह गुण मुझे भी प्राप्त हों। आप एक बहुत ही सरल मनोवृत्ति के विद्वान् हैं / आपमें जरा भी अभिमान नहीं है। आपका सरल सौम्य स्वभाव स्तुत्य है एवं ऐतिहासिक दृष्टि से भी भविष्य में स्तुत्य रहेगा एवं चिरस्मरणीय रहेगा। पं. सनत कुमार जैन खिमलासा, सागर (म.प्र.) देशभक्त मनीषी अनेक वर्षों से मैं प्रो. सुदर्शनलाल जैन को जानता हूँ। इनके परिवार के साथ हमारे निकट सम्बन्ध रहे हैं। इनके पिता जी से मेरी प्रायः प्रतिदिन धर्म और समाज विषयक चर्चा होती थी। वे एक कुशल, अनुशासन प्रिय तथा देशभक्त मास्टर थे। उनके पुत्र में भी वे सभी गुण हैं। सुदर्शन लाल जैन संस्कृत, प्राकृत, पालि आदि भाषाओं के ज्ञाता हैं। अच्छे विद्वान् और विनम्र स्वभावी हैं। देशभक्ति के कारण जब 1962-63 में देश पर आक्रमण हुआ तो आपने प्रधानमन्त्री को अपनी छात्रवृत्ति प्रदान करने हेतु पत्र लिखा था। धर्म में अच्छी रुचि है। इनका अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ हैं। श्री विजय कुमार मलैया विजय आयल मिल, दमोह (म.प्र.) जैन जगत के गौरव प्राचीन काशी नगरी सदैव से विद्वानों को सम्मान व गौरव देती रही है। यह पावन धरा जैन धर्म के चार तीर्थंकरों (सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभु, श्रेयांसनाथ और पार्श्वनाथ) की जन्म भूमि है। यहाँ भारतीय वाङ्मय दर्शन और साहित्य के अध्ययन-अध्यापन की प्राचीन परम्परा अब तक सुरक्षित है। इसी काशी (वाराणसी) नगरी में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष व डीन जैसे महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्यरत तथा अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत् परिषद् के महामन्त्री से सुशोभित माननीय प्रो. सुदर्शन लाल जी का नाम पूरे भारत वर्ष के जैन विद्वानों में बहुत ही आदर व सम्मान से लिया जाता है। वैसे प्रो. साहब से मेरा सीधा वास्ता प्रारम्भ में नहीं था किन्तु मेरे पूज्य पिताजी स्मृतिशेष प्रो. (डॉ.) प्रेमचन्द्र जैन जी (विधि प्रो. हेड व डीन ला फैकल्टी) से आपका गहरा आत्मीय मधुर नाता था। जिससे मेरा आपसे परिचय हुआ। आप अपने शैक्षिक कार्य से 'लोक सेवा आयोग' तथा अन्य संस्थाओं में आते थे एवं शुद्ध आहार व अनुकूल
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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