SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सर्वनाम, विशेषण आदि / 2: अनुवाद [ 165 संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बत्तलाते हैं) शब्दों के लिङ्ग, विभक्ति और बचन अपने-अपने विशेष्य के अनुसार होते हैं विशेष्यस्य हि यस्लिङ्ग विभक्तिबचने च ये / तानि सर्वाणि योज्यानि विशेषणपदेष्वपि / / 22. जब विशेष्य पुं० और स्त्री० दोनों हों तो विशेषण पुं० होगा / (6, 12) 23. यदि एक भी विशेष्य नपुं० होगा तो विशेषण भी नपुं० का ही होगा। उसका वचन या तो एकवचन होगा या संख्या के अनुसार द्विवचन और बहुवचन भी। 24. क्रियाविशेषण सदा नपुं० एकवचन में होंगे / जैसे—मधुरं गायति / 25. 'वा', 'उत्त', 'अपदा' आदि विकल्पवाचक शब्दों से युक्त एकाधिक विशेष्यों का यदि एक ही विशेषण हो तो विशेषण का लिन और वचन बाद वाले विशेष्य के अनुसार होगा। 26. कभी-कभी 'अस्ति', 'भवति' आदि अस्तित्व-वाचक क्रियाओं का प्रयोग अनावश्यक भी होता है। (6). . on 1641. संस्कृत-प्रवेशिका - [पाठ: 5 6. पुत्री और पुत्र रक्षणीय हैं - पुत्री पुत्रश्च रक्षणीयो / 7. उस स्कूल में बहुत से छात्र थे परन्तु छात्रा एक ही थी तस्मिन् विद्यालये बहवः छात्राः आसन् परन्तु छात्रा एका एव आसीत् / 8. यहाँ समिति में भाज अन्त में कैसे आपस में ठीक-ठीक समझौता हो गया % मात्र समिती अध अन्ते (अन्ततोगत्वा ) कथं मिथः यथायथं ऐकमत्यम् अभवत् ? 6. प्रमाद तन्द्रा और आलस्य वर्जनीय हैं -प्रमादः तन्द्रा आलस्यं च वर्जनीयं वर्जनीयानि वा। 10. सुशील बालक, मधुर फल और पुष्पित लतायें कब और कहाँ अच्छी नहीं लगतीं हैं = सुशीला बालकाः, मधुराणि फलानि, पुष्पिताः लताश्च कदा कुत्र च न प्रतिभान्ति / 11. अरे ! गौता स्कूल जल्दी-जल्दी जाती है परन्तु वहाँ वह धीरे-धीरे / पढ़ेगी - अरे | गीता पाठशाला शीघ्रं गच्छति परन्तु तत्र सा शनैः शनैः पठिष्यति / 12. यहाँ तीन लड़के, चार बालिकायें, अठारह स्त्रियाँ और बीस पुरुष हैं जो प्रतिदिन प्रायः गाते हैं = अत्र त्रयः बालकाः चतस्रः बालिकाः अष्टादश स्त्रियः विंशतिः पुरुषाः च सन्ति ये प्रतिदिनं प्रायः गायन्ति / 13. हम सब दुखी हैं परन्तु गीता सुखी है = वयं दुःखिनः परन्तु गीता सुखिनी। नियम-१८. अव्यय सभी लिङ्गों, विभक्तियों और वचनों में अपरिवर्तित होते हैं। 16. हन्त, है, मरे, भोः आदि आश्चर्य-सूचक अव्यय वाक्य के प्रारम्भ में रखे जाते हैं। परन्तु वा, च, तु, हि, चेत् आदि वाक्य के प्रारम्भ में नहीं रखे जाते। 20. विशेषण और किया-विशेषण प्रायः अपने-अपने विशेष्य के पहले आते हैं। कभी-कभी विशेष्य के बाद में भी उनका प्रयोग होता है। जब विशेषण का विधेय ( Predicate) के रूप में प्रयोग होगा तो विशेषण विशेष्य से प्रधान होगा। जैसे-नील कमलम् = कमलं नीलम् / 21. सर्वनाम (जो संशा के स्थान पर प्रयुक्त होते हैं) और विशेषण' (जो १.(क) कुछ शब्द विशेष्य के अनुसार तीनों लिङ्गों में प्रयुक्त होते हैं / जैसे-मधुरः शब्दः, मधुरा वाणी, मधुरं वचनम् / तटः, तटी, तटम् आदि / (ख) कभी-कभी अर्थभेद से भी लिङ्ग बदल जाता है। जैसे-मित्रम् = दोस्त (नपुं०), मित्रः = सूर्य (पुं० ) / (ग) कुछ शब्द अर्थभेद न होने पर भी भिन्न-भिन्न लिङ्गों में ही प्रयुक्त होते हैं। जैसे-'स्त्री' अर्थवाचक 'दाराः' (पुं०), 'स्त्री' (स्त्री०), 'कलत्रम्' (नपुं०)। 'नक्षत्र' वाचक 'पुष्यः' (पुं०), 'तारा' (स्त्री०), 'नक्षत्रम्, (नपुं०)। (घ) कुछ शब्द नियत लिङ्ग और नियत वचन वाले होते हैं / वे विशेषण के रूप में प्रयुक्त होने पर भी विशेष्य के अनुसार नहीं बदलते / जैसे-ज्ञानम् (नपुं०), प्रमाणम् (नपुं०) / वेदाः प्रमाणम् / गुणाः पूजास्थानम्, आदि / नियत लिङ्ग तथा नियत वचन वाले कुछ अन्य शब्द-(१) नित्य पुं०बहुवचन-दाराः (स्त्री), अक्षता: (चावल), लाजाः (लाई), असवा, प्राणाः (जीवन वाचक)। (२)नित्य स्त्री०बहुवचन-अप्सरसः (अप्सरायें ), आपः (जल), वर्षाः (बरसात), सिकताः (बालू), समाः (वर्ष), सुमनसः (फूल)। (3) नित्य द्विवचन-दम्पती (पति-पत्नी), पितरी (माता-पिता), अश्विनी (दो देव) / इसके साथ क्रिया द्विवचनान्त होती है / (1) नित्य नपुं० एकवचन--(क)द्वय; युगल, युग, मिथुन, दन्तु ये 'दो' अर्थ के बोधक हैं तथा गण, वृन्द, कुल, समूह ये बहुत्व के बोधक हैं परन्तु जिनके साथ ये जुड़ते हैं वे एकवचनान्त होते हैं। जैसेछात्रयम् युगलं वा। (ख) पात्रम्, आस्पदम्, स्थानम्, पदम्, भाजनम्। प्रमाणम्, दुःखम्, भूषणम्, कारणम्, परमम्, बलम् आदि पाद जब कर्म या विधेय के रूप में प्रयुक्त होते हैं तो नपुं० एकवचनान्त होते हैं (उद्देश्य के रूप में प्रयुक्त होने पर अन्य वचनों वाले भी होते हैं)। जैसे—गुणाः पूजास्थानं गुणिषु भवन्ति / यूयं मम स्नेहपात्रम् आस्पदम् वा। भवन्तः पत्र प्रमाणं सन्ति / आशा हि परमं दुःखम् / सा मम् मित्रम् अस्ति / सता सङ्गो हि भेषजम् / (5) संख्यावाचक शब्दों के लिए देखिए, पृ० 111, दि०१
SR No.035322
Book TitleSanskrit Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherTara Book Agency
Publication Year2003
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size98 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy