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________________ - - बहुदीहि ] 1. व्याकरण 62] संस्कृत-प्रवेशिका [8 : समास पीताम्बरः (कृष्ण)। यहाँ भी 'पीत' शब्द 'अम्बर' का विशेषण है और फिर दोनों मिलकर 'करुण' के विशेषण हैं। अत: बहुव्रीहि को अन्य पदार्थ प्रधान कहा जाता नगाड़ा); दन्तान ओष्ठौ च = दन्तोष्ठम् (दांत और ओष्ठ ): रथिकाश्व अश्वारोहान = रथिकाश्वारोहम् ( रथिक और घुड़सवार); मार्दङ्गिकच वैणविकश्न = मार्दङ्गिकर्वणविकम् (मृदङ्ग बजाने वाला और वंशी बजाने वाला); पाणिपादम्; धनुःशरम् ) / (ख) जिनका जन्मसिद्ध वैर हो-मूषकच मार्जारश्च = मूषसामाजरिम् (चूहा और बिल्ली); सर्पश्च नकुलश्च = सर्पनकुलम् ( सांप और नेवला)। (ग) भिन्न-भिन्न लिङ्ग वाले नदी, देश और नगर वाचक शब्दों में-गङ्गा च शोणनगङ्गाशोणम् / (गङ्गा और शोण नदी); मथुरा च पाटलिपुत्रश्च-मथुरापाटलिपुत्रम् (मथुरा और पटना ) / (घ) क्षुद्र जीवों के नाम में-यूका च लिक्षा च-यूकालिक्षम् (जुएँ और लीखें)। (क) परस्पर विरुद्ध पदार्थों में (विकल्प से)-शीतञ्च उष्णव-शीतोष्णम् सीतोष्णे वा (ठंडा और गरम); सुखं च दुःखच सुखदुःखम् सुखदुःखे वा (सुख और दुख)। (3) एकशेष द्वन्द्व-जब दो या अधिक पदों में से एक शेष रहे, अन्य का लोप हो जाये तो एकशेष द्वन्द्व समास होता है। इसमें लुप्त पद का बोध समस्तपद में प्रयुक्त संख्या से होता है / यदि समस्त होने वाले शब्द पुं० और स्त्री० दोनों प्रकार के होते हैं तो स्त्रीलिङ्ग वाले शब्द का लोप कर दिया जाता है / जैसे-माता च पिता च - पितरौ ('मातापितरौ' तथा 'मातरपितरौं' ये दो रूप भी बनते हैं); पुत्रश्न दुहिता च-पुत्रो (पुत्र और लड़की); भ्राता च स्वसा च% भातरी (भाई और बहिन); हंसी च हंसश्च = हंसी; श्वश्रूश्च श्वशुरश्न = श्वशुरौ (सास और श्वसुर; 'वधूश्वशुरो' भी होगा); सीता च सीता च = सीते; फलश फलश्च फलञ्च = फलानि / बहुव्रीहि समास (Attributive Compound) 2. बहुव्रीहि समास का विग्रह ( पदच्छेद ) करते समय यत्' शब्द के किसी न किसी रूप का प्रयोग किया जाता है जिससे समास में आये हुए पदों का सम्बन्ध किसी अन्य पद के साथ ज्ञात होता है। 3. पूरा समस्त पर चूंकि विशेषण होता है अतः वह अपने विशेष्य के लिङ्ग, वचन आदि के अनुसार रक्खा जाता है। 4. समानाधिकरण (समान विभक्तिक) और भ्यधिकरण (असमान विभक्तिक) के भेद से बहवीहि समास दो प्रकार का है (क) समानाधिकरण बहुव्रीहि समास (प्रथमान्त + प्रथमान्त)-इसमें समस्त होने वाले पदों की विभक्ति (अधिकरण) एक जैसी (प्रथमा) होती है। विग्रह में प्रयुक्त 'य' शब्द की द्वितीयादि विभक्ति के भेद से इसके 6 भेद किए जाते हैं १.द्वितीयानिष्ठ समानाधिकरण बहुव्रीहि-प्राप्तम् उदकं यं सम्प्राप्तोदकः (ग्रामः- ऐसा गाँव जहाँ पानी पहुँच चुका हो) प्राप्तं धनं यं सः- प्राप्तधनः (नरः); आरुढो वानरो यं सः - आरुतवानरः (वृक्षः)। 2. तृतीयानिष्ठ समानाधिकरण बहुव्रीहि-जितानि इन्द्रियाणि येन सः = जितेन्द्रियः (पुरुषः जिसने इन्द्रियों को वश में कर लिया है); दत्तं चित्तं येन सः मदत्तचित्तः (नरः); कृतं कार्य येन सः = कृतकार्यः (नरः); ऊः रयः ये . साऊरथः (अनड्वान् = बैल)। चतुर्थीनिष्ठ समानाधिकरण बहतीही-दत्तं धनं यस्मै सः- दत्तधनः (ब्राह्मणः); उपहृतः पशुः यस्मै सः = उपहृतपशुः (मद्रः = जिसके लिए बलि के प्रयोजन से पशु लाया गया हो)। 1. जिसमें अन्य पदार्थ की प्रधानता होती है उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं (अनेकमन्यपदार्थे ); अर्थात् जब समास में आये हुए सभी पद किसी अन्य पदार्थ के विशेषण के रूप में कार्य करते हैं तो वहाँ बहुव्रीहि समास होता है। बहुव्रीहि शब्द का यौगिक अर्थ है-बहुः बीहिः (धान्यम्) यस्य अस्ति सम्बनीहिः (जिसके पास बहुत धाग्य हो, वह व्यक्ति विशेष) / यहाँ 'बहु' शब्द 'व्रीहि' का विशेषण है और फिर दोनों मिलकर किसी तीसरे व्यक्ति के विशेषण हैं। पीतम् अम्बरं यस्य सः%3D 1. एक ही समास अर्थभेद होने पर प्रकरण के अनुसार बहुव्रीहि और तत्पुरुष दोनों हो सकता है। जैसे-पीतम् अम्बरं यस्य तत् = पीताम्बरम् (पीले वस्त्र वाली पुस्तक आदि); पीतम् अम्बरम् मीताम्बरम् (पीला कपड़ा); लोकस्य नाथः = लोकनाथः (राजा); लोकाः (प्रजाः) नाथाः यस्य सः = लोकनाथः (भिखारी)। 'लोकनाथ' शब्द कैसे राजा और भिखारी का वाचक है इस सम्बन्ध में भिखारी की उक्ति है 'अहश्च त्वच राजेन्द्र ! लोकनाथाबुभावपि / बहुव्रीहिरहं राजन् षष्ठी तत्पुरुषो भवान् / / '
SR No.035322
Book TitleSanskrit Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherTara Book Agency
Publication Year2003
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size98 MB
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