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________________ 38 ] संस्कृत-प्रवेशिका [3: कृत्-प्रत्यय 3. 'नन् समास' होने पर 'ल्यप्' नहीं होगा। जैसे--+ गम् - अगत्वा 'क्त्वा' प्रत्यय जोड़ते समय स्मरणीय नियम 1. धातु को गुण या वृद्धि नहीं होगी। जैसे-ह>हत्वा, कृ>कृत्वा / 2. 'सेट्' धातुओं से 'इ' जुड़ता है, अनिट् में नहीं। जैसे--प>पठित्वा 3. 'वच्' आदि सम्प्रसारण वाली धातुओं में सम्प्रसारण (य, र, ल, व को क्रमशः इ, ऋ, ल, उ) होता है। जैसे-वच्> उक्त्वा ; यज्>इष्टवा; ग्रह गृहीत्या; स्वप्>सुप्त्वा; वह >ऊढ्या; वप्>उपवा; वस्> उषित्वा। 4. धातु के अंतिम 'च' तथा 'ज्' को 'क; 'द' को 'त'; 'भू को 'ब' और 'ए' को 'द' हो जाता है। जैसे ---भुज>भुक्त्वा; पच्>पक्त्वा; बुध> वुद्ध्वा; त्य >त्ययत्या; छिद् >चित्वा, रुध् > रुवा, लभू> लब्ध्वा / 5. धातु के अंतिम 'कछ' और 'श्' को तथा अज्, सृज्, मृज्, यज्, राग, प्राज् इन धातुओं के 'ज्' को 'ए' हो जाता है। जैसे-प्रच्छ> पृष्ट्या , मृ> . सृष्ट्वा; विश्>विष्ट्या, यज्> इष्ट्वा / 6. '' को ईर' या'कर' होता है। जैसे-तृतीयां', प>पूर्वा / 7 'धा', 'हा' 'भा' और 'स्था' के 'मा' को 'इ'; 'गा' और 'पा' के 'आ' को '' होता है। जैसे-मा>मित्वा; स्था>स्थित्वा; गा>गीवा; पा> पीत्वा, हा>हित्वा, धा-हित्वा / / 8. यम्, रम्, नम्, गम्, हन, मन्, वन और तनादिगणीय धातुओं के 'म' और 'न्' का लोप हो आता है। जैसे-गम् > गत्वा हन् > हत्या / 6. उपधा के 'न' का प्रायः लोप हो जाता है / जैसे-बन्ध > बवा / 1.. जन्, सन् और सन के 'न' को या तो 'आ' होता है या फिर 'इ' का आगम होता है। जैसे--अन् >जात्वा-जनित्वा; सात्वा-सनित्या साला-खनित्वा / नोट 1. प्रायः ये सभी नियम 'क्त', 'क्तवतु' प्रत्यय जोड़ते समय भी लगते हैं। 2. कुछ अन्य 'क्रवा' प्रत्ययान्त रूप-कम्> कगित्वा-कान्त्वा; कम्> क्रगित्वा-कान्त्वा; शम्>शमित्वा-शान्त्वा; अम्>यमित्वा-बान्स्वा; दा>दत्वा, अ>जम्वा, चि>नित्वा, दुह>दुग्ध्वा, सिच्>सिक्त्वा; कह>स्लवा, हेहूवा, गण् > गणयित्वा, अन्य > प्रन्थित्वा, र> रवा-रङ्कस्वा, भ> भक्त्वा-भक्त्या, नश्>नष्ट्वानंष्ट्वा-नशित्वा, भज्>भजित्वा / 'ल्यप् प्रत्यय जोड़ते समय स्मरणीय नियम - 1. प्रायः धातु मूल रूप में रहती है। जैसे-आनीय, आलिस्य, प्रदाय / 2. धातु के अन्त में यदि ह्रस्व स्वर ( अ, इ, उ, ऋ) हो तो 'ल्यप्' के पहले 1. रामारोऽनपूर्वे क्त्वो ल्यप। अ० 7. 1. 37 तव्यद, अनीयर ] 1: व्याकरण 'त्' (तुक ) जुड़ जाता है। जैसे-वि+जि>विजित्य, प्र+ह>प्रहत्य। 3. णिजन्त और चुरादिगणीय धातुओं की उपधा में यदि ह्रस्व स्वर हो तो 'ल्यप' के पहले 'अय' जुड़ता है। जैसे प्र+ग>प्रणमय्य, वि+गण>विगणय्य, वि + रच>विरचय्य / 4. गम्, मम्, यम्, रम् धातुओं के 'म्' का विकल्प से तथा हन्, तन्, मन् / धातुओं के 'न्' का नित्य लोप होता है। जैसे-आ+ गम् आगत्य - आगम्य, आ+ हन्>आहत्य, प्र+नम्>प्रणत्य-प्रणम्या, अनु + मन् > अनुमत्य / / नोट -(1) 'कत्वा' प्रत्यय के नियम नं०३ और..६ भी लगते हैं। जैसेप्र+वच्>प्रोच्य, उत् + तू उत्तीर्य / (2) कुछ अन्य 'ल्यप् प्रत्ययान्त रूप>ि आइय, वसू > अध्युष्य, आप > प्राप्य, विद्यारि>विचार्य, प्रहारि> पहार्य, सम् + शी>संशय्य, प्र+दृश >प्रदय (णिजन्त अधि+ इ अधीत्य) (5) विधि-कृदन्त (Potential Participli)-तव्यत्, तव्य, अनीयर, यत्' विधि, चाहिए, योग्यता आदि अर्थों में तभ्यत (तब्य ), तव्य, अनीयर (अनीय ) और यत् (य) प्रत्यय होते हैं। 'तव्यत्' और 'तव्य' प्रत्ययान्त रूपों में कोई अन्तर नहीं होता है। उसका प्रभाव केवल स्वरप्र-क्रिया पर पड़ता है। (क) 'तव्यत्' और 'बनीयर' प्रत्ययान्त रूपधातु नपुं० पुं० (तव्यम्) (अनीयम्) (तव्यः (अनीयः) (तव्या) (अनीया) , भू भवितव्यम्, भवनीयम् - - - पठ् पठितव्यम्, पठनीयम् पठितव्यः, पठनीयः पठितव्या, पठनीयत गम् गन्तव्यम्, गमनीयम् गन्तव्यः, गमनीयः गन्तब्या. गमनीया 1. (क) विधि अर्थ में तब्यत्, तव्य, अनीयर और यत्, के अलावा 'कलिमर' (एलिम), 'क्यप्' (य) और 'ण्यत् (य) ये प्रत्यय भी होते हैं। इन , सभी प्रत्ययों को 'कृत्य-प्रत्यय' कहा जाता है / उदाहरण-पच्+केलिमरपचेलिमम्, भिद्>भिदेलिमम्, स्तु+क्यप् स्तुत्यम्, +ण्यत्-कार्यम् / (ख) कृत्य-प्रत्ययान्त संज्ञाओं के रूप पुं० में 'राम', नपुं० में 'शान' और स्वी.' में 'लता' की तरह चलेंगे। (ग) कभी-कभी इन प्रत्ययान्त शब्दों का प्रयोग विशेषण के रूप में भी होता है। से-कर्तव्यं कर्म, दानीयो विप्रः (दीयतेऽस्मै)। 1. हस्वस्य पिति कृति तुक् / अ० 6.1.71. 2. ल्यपि लघुपूर्वात् / अ०.६.४. 3. तव्यत्तव्यांनीयरः / अचो यत् / अ० 3.1.66.67 4. केलिमर असंख्यानम् (वा.)। एतिस्तुशासवृदृजुषः क्यप् / (103. 16) / मृजेविभाषा / अ० 3.1.113 / ऋहलोण्यत् / अ० 3.1.124 // 5. अकाठमों से केवल नपुंके रूपवनेंगे। स्त्री
SR No.035322
Book TitleSanskrit Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherTara Book Agency
Publication Year2003
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size98 MB
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