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________________ मधु बिंदु के दृष्टांत से बात स्पष्ट हो जाती है कि चारों ओर से दुःख से घिरी होने पर भी आत्मा मधु बिंदु तुल्य , संसार के तुच्छ सुखों में आसक्त होती है। सुदेव में देवबुद्धि, सुगुरु में गुरु बुद्धि और सुधर्म में धर्मबुद्धि ही धर्म है, जबकि राग-द्वेष से युक्त कुदेव में देवबुद्धि, कंचनकामिनी से युक्त कुगुरु में गुरुबुद्धि और जीव-हिंसादि अधर्म में धर्मबुद्धि ही मिथ्यात्व है | गाढ़ मिथ्यात्व के अस्तित्व काल में मोक्ष की रुचि पैदा नहीं होती है / कदर्शन का तीव्रराग ही दृष्टिराग है / यह दृष्टि-राग कामराग और स्नेह-राग से भी अधिक भयंकर है / इस संसार में परिभ्रमण कर रही आत्मा को एक बार भी सम्यग्दर्शन का स्पर्श हो जाए तो वह आत्मा, अर्ध पुदगल परावर्त काल से अधिक, इस संसार में परिभ्रमण नहीं करती है | मिथ्यात्व की स्थिति में जीवात्मा को संसार के सुख के प्रति तीव्र राग भाव होता है और संसार के दुःखों के प्रति तीव्र द्वेष भाव होता है / मिथ्यात्व से ग्रस्त आत्मा के ज्ञान को भी अज्ञान और चारित्र को भी काय-कष्ट कहा गया है / सम्यक्त्व से युक्त अष्ट प्रवचनमाता के ज्ञान वाला भी ज्ञानी कहलाता है / मिथ्यात्व के भेद 1. आभिग्रहिक मिथ्यात्व-तत्त्व को नहीं जानते हुए भी अपनी झूठी मान्यता के कदाग्रह को नहीं छोड़े उसे आभिग्रहिक मिथ्यात्व कहते हैं | 2. अनभिग्रहिक मिथ्यात्व-सभी दर्शनों को समान समझना | इस मिथ्यात्व में अज्ञान होते हुए भी किसी का कदाग्रह नहीं होता है | 3. आभिनिवेशिक मिथ्यात्व-सर्वज्ञ कथित बहुत सी बातों पर श्रद्धा रखते हुए भी किन्हीं 1-2 बातों में अविश्वास करना, उसे आभिनिवेशिक मिथ्यात्व कहते हैं। 4. सांशयिक मिथ्यात्व-जिनेश्वर के वचनों में संदेह करना-उसे सांशयिक मिथ्यात्व कहते हैं / कर्मग्रंथ (भाग-1) 61
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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