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________________ नामक कीट-भक्षी पौधा है / यह स्थिर जल में उगता है | इसकी पत्तियाँ सुई के आकार की होती हैं और पानी पर तैरती हैं | पत्तियों के बीच में गुब्बारे के समान फूले अंग होते हैं / यह पौधा इन्हीं गुब्बारों से कीड़ों को पकड़ता है | * अफ्रीका महाद्वीप तथा मेडागास्कर द्वीप के सघन जंगलों में कोई मानव-भक्षी वृक्ष भी मिलते हैं, जो मनुष्य और पशु को अपना शिकार बना देते हैं / * सूडान और वेस्ट इंडीज में एक ऐसा वृक्ष पाया जाता है, जिसमें दिन में अद्भुत प्रकार के संगीत के स्वर निकलते हैं और रात्रि में रुदन की आवाज आती है। * क्वींस और न्यू साऊथ वेल्स में एक ऐसा वृक्ष पाया जाता है जो पास आने वाले व्यक्ति को डंक मारता है / इस वृक्ष को Touch me not भी कहते हैं। वनस्पति में भी अपने आहार की शोध के लिए किये गये प्रयत्न देखने को मिलते हैं / बबूल वृक्ष की जड़ें, पानी की शोध में पानी की दिशा में 50-60 फुट दूर चली जाती है। * श्वेतार्क वनस्पति लोभवाश अपनी जड़ों से धन को ढक देती है / आत्मा स्वभाव से निर्मल है आत्मा अपने मूलभूत स्वभाव की अपेक्षा से तो निर्मल ही है, परन्तु अनादिकाल से उसके ऊपर कर्म का आवरण आया हुआ होने के कारण वह हमें विकृत स्वरूप में नजर आती है और इसी कर्म की विकृति के कारण उसे जन्म-मरण करना पड़ता है / परन्तु सत्प्रयत्नों के द्वारा हम अपनी उस मलिनता को दूर कर सकते हैं और अपने मौलिक शुद्ध-स्वभाव को प्राप्त कर सकते हैं। किसी भी वस्तु में जो स्वभाव सत्तागत न हो, वह कभी भी प्रगट नहीं हो सकता / जो गुण या स्वभाव सत्तागत हो, वही प्रगट होता है / उदाहरणतः खान में रहा हुआ सोना अनादि काल से विजातीय मिट्टी आदि तत्त्वों के संसर्ग के कारण एकदम मलिन दिखाई देता है | रासायनिक प्रक्रियाओं के द्वारा खान में से निकले मलिन स्वर्ण में पुनः चमक-दमक आ जाती है | इस चमक-दमक कर्मग्रंथ (भाग-1), 150
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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