________________ अनुभव है / वनस्पति आदि में भी सुख-दुःख, स्नेह, द्वेष, वासना आदि के संस्कार होते हैं। जैन आगमों में वनस्पति के विविध संवेदन | संज्ञाओं का विस्तृत वर्णन मिलता है / आज वे अनेक बातें वैज्ञानिक दृष्टि से सिद्ध हो चुकी हैं | डॉ. जगदीशचन्द्र बसु ने यह सिद्ध कर दिखलाया है कि-'तुच्छ से तुच्छ वनस्पति में भी मज्जा तंतु होते हैं / सामान्य प्राणियों की भाँति उन पर भी बाहरी प्रभाव पड़ता है / सर्दी से सिकुड़ना, नशा, जहर आदि का प्रभाव जैसा अन्य प्राणियों पर होता है, ठीक वैसा ही उन पर भी होता है / अन्य प्राणियों की नाड़ियों जैसी धड़कन, रस-रक्त का आरोही-अवरोही प्रवाह, यहाँ तक कि मृत्यु भी वनस्पतियों की होती है / * छुईमुई के पौधे के किसी भी अंग को यदि छुआ जाय तो वह भयभीत हो जाती है और अपनी सुरक्षा के लिए अपनी सारी पत्तियों को सिकोड़ लेती है। * फ्रेंच वैज्ञानिक 'कवि' (1828) अपनी 'प्राणी राज्य' पुस्तक में लिखता है कि-'वनस्पति भी अपनी तरह सचेतन है / वे मिट्टी, हवा और पानी में से हाइड्रोजन , आक्सीजन, नाइट्रोजन आदि तत्त्व लेती हैं और उसे अपने देह में पचाती हैं। * वनस्पति अपनी. जड़ों से मिट्टी-पानी का तो आहार ग्रहण करती ही हैं / कई वनस्पतियाँ, वनस्पतियों का भी आहार करती हैं / ये वनस्पतियाँ जिन वृक्षों पर उगती हैं, उनमें जड़ें फँसा कर उनका शोषण कर अपना भोजन बनाती है / अमरबेल इसी प्रकार की वनस्पति है | * कई वनस्पतियाँ कीट-पतंग और मानव का भी आहार ग्रहण कर लेती हैं, उन्हें 'मांसाहारी वनस्पतियाँ' कहते हैं / * आस्ट्रेलिया के जंगल में ऐसी अनेक वनस्पतियाँ हैं, जो समीप आने वाले पशु व मानव का भी शिकार कर देती हैं | * तस्मानिया के पश्चिमी वनों में 'होरिजिंटल स्क्रब' नामक वृक्ष है, यह वृक्ष आगंतुक पशु-पक्षी व मनुष्य को अपने क्रूर पंजों का शिकार बना देता है / * उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अफ्रीका आदि में 'युटी कुलेरियड' कर्मग्रंथ (भाग-1)) 149