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________________ * दूर से तेजी से आ रही गाडी Motor-Car आदि में ड्राइवर Driver दिखाई नहीं देता है, परंतु इतने मात्र से ड्राइवर का निषेध नहीं किया जाता है। * अत्यंत दूर रही वस्तु को , आँख के अत्यंत समीप रही वस्तु को तथा अत्यंत सूक्ष्म वस्तु को हम अपनी आँख द्वारा नहीं देख पाते हैं, इतने मात्र से उन वस्तुओं के अस्तित्व का इन्कार नहीं कर सकते / * अपना मन विक्षिप्त हो अथवा अन्यत्र हो तो पास में पड़ी रही वस्तु भी हमें दिखाई नहीं देती है, परंतु इतने मात्र से उस वस्तु का निषेध नहीं कर सकते / आत्मा अरूपी पदार्थ होने से उसे किसी भी इन्द्रिय के द्वारा ग्रहण नहीं कर सकते / - आँख रूप को देख सकती है। * कान शब्द को पकड़ सकता है | * नाक गंध को ग्रहण कर सकता है | * जीभ स्वाद को पहचान सकती है / * त्वचा स्पर्श को जान सकती है / * आत्मा का कोई रूप नहीं है / * आत्मा में कोई शब्द नहीं है | * आत्मा में कोई गंध नहीं है / * आत्मा में कोई रस नहीं है / * आत्मा में कोई स्पर्श नहीं है / आत्मा में शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श का सर्वथा अभाव होने से उसे किसी भी इन्द्रिय के द्वारा जाना / पहिचाना नहीं जा सकता / जैसे शरीर में होनेवाली सिरदर्द आदि पीड़ा को न तो आँख से देख सकते हैं, न कान से सुन सकते हैं, न नाक से सूंघ सकते हैं, न जीभ से चख सकते हैं और न ही हाथ से स्पर्श कर सकते हैं, फिर भी हम उस पीड़ा का स्वीकार करते ही हैं, उसी प्रकार शरीर में रही आत्मा का किसी भी इन्द्रिय द्वारा ज्ञान नहीं होने पर भी उसे अनुभव के द्वारा जाना जा सकता है | कर्मग्रंथ (भाग-1)
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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