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________________ जिर दूरी से आए शब्द को हम सुन नहीं सकते हैं / हाँ ! साधन के माध्यम से दूर रहे शब्दों को भी सुना जा सकता है / 'शब्द पुद्गल स्वरूप हैं, अतः जोर से बोले गए शब्द कुछ ही समय में 14 राजलोक में फैल सकते हैं। जिस प्रकार समुद्र में उठती एक तरंग, नई तरंग को पैदा करती है, उसी प्रकार शब्द के पुद्गल भी दूसरे पुद्गलों को वासित करते जाते हैं | इन्द्र की आज्ञा से हरिणैगमेषी देव सुघोषा घंट बजाता है और उस सुघोषा घंट के शब्द असंख्य योजन दूर रहे अन्य-अन्य देवलोक में रहे घंट में उतर जाते हैं और वे घंट भी स्वयं बजने लग जाते हैं / उस घंट की ध्वनि के आधार पर परमात्मा के जन्म आदि कल्याणक की सूचना वहाँ रहे देवीदेवताओं को मिल जाती है / इससे यह स्पष्ट है कि दूर रहे शब्दों को भी यंत्र द्वारा श्रोत्रेन्द्रिय-ग्राह्य बनाया जा सकता है। विज्ञान के अनुसार शब्द की गति 1 सेकंड में 1100 फूट है, फिर भी रेडियो द्वारा दूर रहे शब्द को तत्काल सुन सकते हैं, उसका कारण यह बताते हैं कि रेडियो स्टेशन पर से ध्वनि तरंगों को विद्युत् चुंबकीय तरंगों में रूपांतरित किया जाता है, इस कारण उसकी गति 1 सेकंड में 1,86,000 मील की हो जाती है, अतः वे शब्द तत्क्षण चारों ओर फैल जाते हैं तथा रेडियो आदि द्वारा वह विद्युत् प्रवाह पुनः शब्द तरंगों में रूपांतरित हो जाने से वे शब्द हमें तत्क्षण सुनाई पड़ते हैं / जैन दर्शन के अनुसार चौदह राजलोक में भाषा वर्गणा के पुद्गल रहे हुए हैं / जब कोई बोलना चाहता है, तब (पर्याप्त नाम कर्म के उदय से भाषा पर्याप्ति द्वारा) आत्म-शक्ति द्वारा भाषा वर्गणा के पुद्गलों को ग्रहणकर उन्हें भाषा रूप में परिणत करता है, फिर उन शब्दों को बोलता है / यद्यपि शब्द के पुद्गलों में भी रूप, रस, गंध आदि होते हैं, परंतु वे इतने अधिक सूक्ष्म होते हैं कि उन्हें इन्द्रियाँ ग्रहण नहीं कर पाती हैं / फिर भी CONS कर्मग्रंथ (भाग-1) =138
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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