________________ अनुक्रमणिका 6. क्रम विषय पृष्ट संख्या 1. जगत् कर्ता कौन ? ...... 2. आत्मा कर्म का कर्ता है और कर्म का भोक्ता है |.. 3. अद्भुत व आश्चर्यजनक जगत् कर्म की सिद्धि 5. जैन धर्म के अकाट्य सिद्धांत ............... देहभिन्न आत्मा ........... कर्म विज्ञान कर्म-विपाक (मंगलाचरण और विषय निर्देश) 9. जीव और कर्म का संबंध ............ 10. पाँच-ज्ञान ......... 11. मतिज्ञान के अवांतर भेद ............... 12. मतिज्ञान के शेषभेद व श्रुतज्ञान 13. श्रुतज्ञान के 14 भेद........ 14. श्रुतज्ञान के 20 भेद......................................... 15. श्रुतज्ञान ......... 16. श्रुत ज्ञानावरणीय कर्म ............ 17. रोहक की चतुराई ............. 18. बारहवां अंग-दृष्टिवाद .............. 19. अवधिज्ञान-मनःपर्यवज्ञान-केवलज्ञान............. ....... 1100 20. दूसरा दर्शनावरणीय कर्म .............. ....... 119 21. निद्रा-पंचक............. ....... 121 22. वेदनीय कर्म .... ...... 124 23. मोहनीय कर्म ........... 24. उपशम सम्यक्त्व . सम्यक्त्व के भेद चारित्र-मोहनीय पाँचवाँ आयुष्य कर्म. 28. नाम कर्म. 29. कतिपय संज्ञाएँ ............ 30. गोत्र व अंतराय कर्म ......... 31. ज्ञानावरणीय-दर्शनावरणीय बंध के हेतुः .......... ..... 1 32. वेदनीय कर्म बंध के कारण ..... 195 33. दर्शनमोहनीय बंध के हेतु .................................... ....... 198 34. देव आयुष्य-नामकर्म के हेतु ................. 203 35. गोत्र कर्म बंध हेतु ............. 205 36. अंतराय कर्म के हेतु ... 207 193 कर्मग्रंथ (भाग-1) 16