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________________ दान देना उनके लिए मरने समान है / लोग उन्हें कृपण, मक्खीचूस आदि इल्काब देते हैं, फिर भी उसका मन पिघलता नहीं है / सेठ की इस स्थिति को देख सबको दया आती है / सभी को अत्यंत आश्चर्य होता है, परंतु कर्मविज्ञान को समझने वाले के लिए कोई आश्चर्य नहीं है, क्योंकि यह तो दानांतराय कर्म का ही उदय है / इस कर्म का उदय होने से दान देने की शक्ति होने पर और दान लेने वाले सुपात्र का संयोग होने पर भी व्यक्ति दान नहीं कर पाता है और जिस व्यक्ति को दानांतराय कर्म का क्षयोपशम होता है वह अपनी अल्पशक्ति होने पर भी दान किए बिना नहीं रह सकता है / ऐसा व्यक्ति अपनी भावना अनुसार दान धर्म की आराधना कर सकता है / इससे स्पष्ट है कि दान देने के लिए धन-सामग्री ही पर्याप्त नहीं है, दान देने का भाव भी होना चाहिए / दुनिया में अनेक समृद्ध व्यक्ति दिखाई देते हैं, जिनके पास अपार संपत्ति होने पर भी वे लेश भी दान नहीं कर पाते हैं अथवा दान देने के प्रसंग को टालने की कोशिश करते हैं / यह सब दानांतराय कर्म का ही प्रभाव है | इस जगत् में हमें एक आश्चर्य यह भी दिखाई देता है कि अमुक व्यक्ति धन कमाने के लिए रात-दिन प्रयत्न करता है, उसके पास बुद्धिबल भी होता है, फिर भी उसे व्यापार में सफलता नहीं मिल पाती है, वह जो-जो व्यापार करता है, उस व्यापार में उसे लाभ के बजाय घाटा ही होता है कई बार तो वह लाभ कमाने के बजाय अपने मूल धन को ही खो बैठता है / पूरा-पूरा पुरुषार्थ होने पर भी व्यापार में सफलता नहीं मिल पाती हैउसका मुख्य कारण है-लाभांतराय कर्म का उदय / लाभांतराय कर्म का क्षयोपशम हो तो व्यक्ति को अल्प प्रयास में भी बड़ी भारी सफलता मिल जाती है। दुनिया में कई लोग ऐसे दिखाई देते हैं जो मेहनत बहुत करते हैं, फिर भी उन्हें लाभ नहीं मिल पाता है और कई लोग ऐसे होते हैं जो बहुत कम प्रयास करते हैं, फिर भी उन्हें अधिक सफलता मिल जाती है / यह सब लाभातंराय कर्म के उदय व क्षयोपशम पर ही निर्भर करता है। 3. जिस वस्तु का एक ही बार भोग किया जा सकता हो, ऐसी सामग्री कर्मग्रंथ (भाग-1)) 1208
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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