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________________ ............... . E अंतराय कर्म के हेतु जिणपूआ विग्घ-करो, हिंसाइ परायणो जयइ विग्छ / इअ कम्म-विवागोयं, लिहिओ देविंद-सूरीहिं / / 6111 शब्दार्थ जिणपूआ जिनेश्वर की पूजा, विग्घकरो=अंतराय करनेवाला, हिंसाइ हिंसादि, परायणो आसक्त, जयइ=बाँधता है, विग्घं अंतराय कर्म, इअ इस प्रकार, कम्म विवागो=कर्म-विपाक, लिहिओ लिखा है, देविंद सूरीहिं देवेन्द्रसूरि द्वारा / गाथार्थ जिनेश्वर प्रभु की पूजा में अंतराय करनेवाला, हिंसा आदि में तत्पर व्यक्ति अंतराय कर्म का बंध करता है / इस प्रकार यह 'कर्म विपाक' श्री देवेन्द्रसूरि ने रचा है / विवेचनआठवाँ अंतराय कर्म जगत् में रहे विविध प्राणियों के जीवन पर दृष्टिपात करते हैं, तब हमें सभी प्रकार के प्राणियों के अपने-अपने कर्मों की विचित्रताओं के अनुसार, अनेक प्रकार की विचित्रताएँ देखने को मिलती हैं / जो विचित्रताएँ हमारे दिल में आश्चर्य पैदा किए बिना नहीं रहती हैं / 1. एक सेठ के पास लाखों की संपत्ति है, उसके द्वार पर भीख माँगने के लिए अनेक व्यक्ति आते हैं, परंतु वह सेठ किसी को एक पैसा भी नहीं देना चाहता है | लोग उस सेठ को समझाने की बहुत कोशिश करते हैं, परंतु सेठ मानने के लिए तैयार नहीं है / सेठ के पास धन की कोई कमी नहीं है, परिवार के लोग भी उन्हें दान देने से रोकते नहीं हैं, फिर भी आश्चर्य है कि सेठ को दान देने की इच्छा ही नहीं होती है / कर्मग्रंथ (भाग-1) E2073
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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