________________ शब्दार्थ जंजो, संघायइ-इकट्ठा करते हैं, उरलाइ=औदारिक आदि, पुग्गले पुद्गलों को , तिण गणं तृण का समूह, व=तरह, दंताली दंताली, तं वह, संघायं-संघातन नामकर्म , बंधणं बंधन, इय-तरह, तणु नामेण शरीर के नाम से , पंचविहं पाँच प्रकार का / गाथार्थ ___ जिस प्रकार दंताली से तृण का समूह एकत्र किया जाता है, उसी प्रकार जो कर्म औदारिक शरीर आदि पुद्गलों को इकट्ठा करता है, उसे संघातन नाम कर्म कहते हैं | बंधन की तरह इसके भी औदारिक आदि पाँच शरीरों के नाम से 5 भेद होते हैं / विवेचन 6. संघातन नामकर्म : दंताली द्वारा जिस प्रकार तृण समूह को इकट्ठा किया जाता है, उसी प्रकार जो कर्म औदारिक आदि शरीर-पुद्गलों को एकत्र करता है, उसे संघातन नामकर्म कहते हैं / पूर्व गृहीत और ग्रहण किए जा रहे पुद्गलों का परस्पर बंधन तभी संभव है, जब गृहीत और गृह्यमाण पुद्गल समीप में होंगे / अर्थात् वे दोनों एक दूसरे के निकट होंगे, तभी बंधन होना संभव है-यह संघातन नामकर्म का कार्य है। संघातन नामकर्म शरीर योग्य पुद्गलों को निकट में लाता है और बंधन नामकर्म के द्वारा वे सम्बद्ध होते हैं / संघातन नामकर्म के 5 भेद हैं : शरीर के रूप में परिणत पुद्गलों का परस्पर सान्निध्य हो, उसे औदारिक संघातन नामकर्म कहते हैं / 2. वैक्रिय संघातन नामकर्म : जिस कर्म के उदय से वैक्रिय शरीर रूप में परिणत पुद्गलों का परस्पर सान्निध्य हो, वह वैक्रिय संघातन नामकर्म कहलाता है। कर्मग्रंथ (भाग-1) - 171