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________________ चिपका देते हैं, उसी प्रकार यह बंधन नाम कर्म , पहले ग्रहण किए गए और वर्तमान में ग्रहण किए जा रहे औदारिक आदि शरीर के पुद्गलों को बाँध देता है / यदि यह बंधन नाम कर्म नहीं होता तो उन पुदगलों का संबंध भी नहीं जुड़ता और वे पुद्गल हवा में ऐसे ही उड़ जाते / __उत्पत्ति स्थान में आया हुआ जीव पहले समय में जिन औदारिक आदि पुद्गलों को ग्रहण करता है, उसे सर्वबंध और दूसरे समय से लेकर मरण समय तक जिन पुद्गलों को ग्रहण करता है, उसे देशबंध कहा जाता है / 5. इस बंधन नाम कर्म के 5 भेद हैं : 1) औदारिक बंधन नाम कर्म : जिस कर्म के उदय से पहले ग्रहण किए हुए औदारिक पुद्गलों के साथ वर्तमान में ग्रहण किए जा रहे पुद्गलों का संबंध होता है, उसे औदारिक बंधन नाम कर्म कहते हैं / 2) वैक्रिय बंधन नाम कर्म : पहले ग्रहण किए वैक्रिय वर्गणा के पुद्गलों के साथ वर्तमान में ग्रहण कियेजा रहे वैक्रिय वर्गणाओं के पुद्गलों का जो संबंध होता है, उसे वैक्रिय बंधन नाम कर्म कहते हैं | __3) आहारक बंधन नाम कर्म : पहले ग्रहण किए आहारक वर्गणा के पुद्गलों के साथ वर्तमान में ग्रहण किए जा रहे आहारक वर्गणाओं के पुद्गलों का जो संबंध होता है, उसे आहारक बंधन नाम कर्म कहते हैं | ___4) तैजस बंधन नाम कर्म : पहले ग्रहण किए गए तैजस वर्गणा के पुद्गलों के साथ वर्तमान में ग्रहण किए जा रहे तैजस वर्गणा के पुद्गलों का जो संबंध होता है, उसे तैजस बंधन नाम कर्म कहते हैं / 5) कार्मण बंधन नाम कर्म : पहले ग्रहण किए कार्मण वर्गणा के पुद्गलों के साथ वर्तमान में ग्रहण किए जा रहे कार्मण पुद्गलों का जो संबंध होता है, उसे कार्मण बंधन नाम कर्म कहते हैं | पाँच संघातन जं संघायइ उरलाइ, पुग्गले तिण गणं व दंताली / तं संघायं बंधणमिव तणु नामेण पंचविहं ||36 / / कर्मग्रंथ (भाग-1)== 1170 =
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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