________________ मृत्यु पाए हुए व्यक्ति के बाह्य शरीर में से तैजस शरीर के निकल जाने के साथ ही वह शरीर ठंडा पड़ जाता है / उस शरीर में से गर्मी निकल जाती है, उसके बाद उस शरीर को मृत देह घोषित किया जाता है / यह शरीर आत्मा के साथ अनादिकाल से जुड़ा हुआ है और विग्रह गति में भी यह शरीर साथ रहता है। 5. कार्मण शरीर-आत्मा के साथ लगे कर्म-परमाणुओं के समूह को ही कार्मण शरीर कहते हैं / पानी व दूध के मिश्रण की तरह ये कर्म वर्गणाएँ आत्मा के साथ एकमेक होकर रही हुई हैं / यह शरीर भी आत्मा के साथ अनादिकाल से लगा हुआ है और विग्रह गति में भी आत्मा के साथ रहता है। इन पाँचों शरीर का प्रमाण क्रमशः सूक्ष्म-सूक्ष्मतर है, परंतु परमाणुओं की संख्या क्रमशः अधिक-अधिक ही होती है। * औदारिक, वैक्रिय व आहारक की अपेक्षा तैजस व कार्मण शरीर अत्यंत ही सूक्ष्म होते हैं / * औदारिक व वैक्रिय शरीर का संबंध एक भव तक होता है / मृत्यु के साथ ही उस शरीर को छोड़ना पड़ता है, जबकि तैजस व कार्मण शरीर मृत्यु के बाद भी आत्मा के साथ जुड़े रहते हैं / प्रवाह की अपेक्षा ये दोनों शरीर आत्मा के साथ अनादिकाल से हैं | * संसारी आत्मा को एक समय में कम से कम दो व अधिकतम चार शरीर होते हैं। * विग्रहगति में आत्मा के साथ मात्र दो, तैजस व कार्मण शरीर ही होते हैं। * अधिक समय के लिए जीवात्मा को तैजस-कार्मण व औदारिक शरीर (मनुष्य व तिर्यंच गति में) तथा तैजस-कार्मण व वैक्रिय शरीर (देव व नारक गति में) होते हैं। * एक साथ चार शरीर-औदारिक, वैक्रिय, तैजस व कार्मण शरीरवैक्रिय-लब्धिधारी मनुष्य व तिर्यंच को होता है तथा औदारिक-आहारक-तैजस और कार्मण शरीर, आहारक-लब्धिधारी चौदह पूर्वी मुनि को आहारक-शरीर बनाते समय होता है। कर्मग्रंथ (भाग-1)) 6167