SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संसारी आत्मा मौत को नहीं चाहे तो भी उसे मरना पड़ता है / जीवन के साथ मौत जुड़ी हुई है / मौत भी अपनी पसंदगी के अनुसार नहीं आती है / वह तो दीवाली के दिन भी आ जाती है और अपने जन्मदिन पर भी आ जाती है / जिसकी कल्पना मात्र से हम घबरा जाते हैं, ऐसे विकट प्रसंगों में भी मौत आकर अपना द्वार खटखटा देती है / * लग्न के साथ ही पति की मृत्यु हो जाती है और कुदरत उस कन्या का सौभाग्य चिह्न सदा के लिए छीन लेती है | . सगर चक्रवर्ती के एक ही साथ 60,000 पुत्र नागकुमार देवता के रोष के शिकार बन गए और उन्हें एक साथ मरना पड़ा / * सात-सात पुत्रों का पिता होने पर भी व्यक्ति संडास (Latrine) में ही सदा के लिए विदाई ले लेता है | जिसके नाखून में भी रोग नहीं, ऐसा हट्टा-कट्टा व्यक्ति हार्ट फेल हो जाने से तत्क्षण मर जाता है। अचानक भूकंप आ जाने से, अचानक नदी में बाढ़ आ जाने से, अचानक बाँध टूट जाने से, अचानक बिल्डिंग गिर जाने से, अचानक बस, ट्रेन, प्लेन का एक्सीडेंट हो जाने से सैकड़ों की संख्या में लोग मर जाते हैं / संसार में आत्मा के लिए कितने बंधन हैं ? इच्छा के अनुसार जन्म नहीं, इच्छा के अनुसार मृत्यु नहीं / नरक की भयंकर यातनाओं को प्रति पल सहन करने वाले नारक जीव हमेशा मृत्यु की इच्छा करते हैं, फिर भी वे मरते नहीं हैं, उन्हें अपना आयुष्य पूरा करना ही पड़ता है / * नंदिषेण आदि ने आत्महत्या के लिए भी प्रयास किए थे, फिर भी उन्हें सफलता नहीं मिली / * इन्द्र महाराजा ने महावीर प्रभु को हाथ जोड़कर कहा 'प्रभो ! भस्मराशि ग्रह का उदय होने वाला है, आप अपना आयुष्य थोड़ा सा बढ़ा दो, जिससे आपके शासन पर क्रूर-ग्रह की असर न हो / ' (कर्मग्रंथ (भाग-1)) 1493
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy