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________________ को शाता वेदनीय का उदय होता है और तिर्यंच और नरक के जीवों को अशाता वेदनीय का उदय होता है | देवलोक में पुण्य का उदय विशेष होता है, इस कारण वहाँ इन्द्रियजन्य सुखों की बहुलता है | नरक के जीवों को पाप का तीव्र उदय होता है, वहाँ पर इन्द्रियजन्य सुख के साधन उपलब्ध नहीं हैं, वहाँ प्रतिकूल संयोग भरे हुए हैं, अतः उन जीवों को सतत अशाता का उदय कहा जाता है / तिर्यंच गति के जीवों के दुःख प्रत्यक्ष देखे जाते हैं / भूख, प्यास, सर्दी, गर्मी, रोग आदि की पीडाएँ उन्हें सताती रहती हैं, अतः वहाँ भी अशाता की ही प्रधानता है | गाडी में भी घूमते हैं | कुछ हाथी-घोड़ों को स्नान, आहार आदि मिल जाता है / यह उनके शाता वेदनीय का उदय कहलाता है | नारक-तिर्यंचों की अपेक्षा मनुष्य को कम दुःख होता है, अतः इस अपेक्षा से मनुष्य को शाता वेदनीय का उदय कहा गया है / यद्यपि देवलोक में सुख की सामग्री अत्यधिक प्रमाण में है फिर भी ईर्ष्या, मत्सरता, लोभ आदि के कारण देवता दुःखी होते है / देवताओं का आयुष्य जब पूर्ण होने आता है, उसके छह मास पहले उनके गले में रही फलों की माला कुम्हलाने लगती है | उनका मुखमंडल निस्तेज हो जाता है | मरकर तिर्यंच गति में जाना पड़े तो उसकी भी चिंता सताती है / इस प्रकार देवता को भी कभी-कभी अशाता का उदय हो सकता है / PLEMEEnder E संसार में मजा कम है और सजा ज्यादा है। संसार में सुख नाममात्र का है और दुःख का पार नहीं है / फिर भी आश्चर्य है कि कण भर के सुख के लोभ के कारण संसारी जीव को संसार के सुख __ के प्रति वैराग्य भाव पैदा नहीं होता है / ALL ARS TRE कर्मग्रंथ (भाग-1)) 1263
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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