________________ प्रत्यक्ष-ज्ञान और परोक्ष ज्ञान 1. मन व इन्द्रियों के माध्यम से होने वाले मति और श्रुत ज्ञान, परोक्षज्ञान कहलाते हैं। 2. मन व इन्द्रियों की सहायता बिना होने वाले आत्म प्रत्यक्ष अवधि, मनःपर्यव व केवलज्ञान को प्रत्यक्ष ज्ञान कहते हैं / ज्ञानावरणीय कर्मबंध के हेतु 1. ज्ञानी की आशातना करने से / 2. ज्ञान पढने में विघ्न डालने से | 3. ज्ञानी का अविनय-अनादर करने से / 4. ज्ञानी व ज्ञान के साधनों पर थूकने से, मल-मूत्र आदि करने से | 5. ज्ञानी की निंदा करने से / 6. ज्ञान का विनाश करने से / 7. ज्ञान का दुरुपयोग करने से / ज्ञानावरणीय कर्मबंध से बचने के उपाय : 1. छपे हुए कागज-पुस्तक को जलाना नहीं चाहिए | 2. छपी पुस्तकों को पटकना , फेंकना और मोड़ना नहीं चाहिए | 3. छपी पुस्तक-लिखे कागज पर मल-मूत्र नहीं करना चाहिए और उन कागज आदि से मल-मूत्र साफ नहीं करने चाहिए / 4. छपे हुए कागज पर भोजन नहीं करना चाहिए | 5. जूठे मुँह बोलना नहीं चाहिए / 6. अध्ययन कर रहे किसी को अंतराय नहीं करना चाहिए / 7. एम.सी. काल में बहिनों को पुस्तक आदि नहीं पढ़नी चाहिए / 8. जिन वचन का गलत अर्थ नहीं करना चाहिए / 9. ज्ञानद्रव्य का भक्षण नहीं करना चाहिए / उसका पूरी सावधानी से रक्षण करना चाहिए। 10. पेन-पेंसिल से कान साफ नहीं करना चाहिए / कर्मग्रंथ (भाग-1) 1165