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________________ बारहवा अग-दष्टिवाद) ........................ (चौदह पूर्व) तारक तीर्थंकर परमात्मा के मुखारविंद से त्रिपदी का श्रवण कर गणधर भगवंत द्वादशांगी की रचना करते हैं | उन 12 अंगों में से आज 11 अंग विद्यमान हैं, जो 45 आगमों में मुख्य कहलाते है | 12 वें अंग-दृष्टिवाद का विच्छेद हो गया है / भगवान महावीर के शासन में भगवान महावीर की पाट परंपरा में आए हुए सुधर्मास्वामी और जंबूस्वामी तो केवलज्ञानी हुए / जंबूस्वामी की परंपरा में आए हुए प्रभवस्वामी, शय्यंभवसूरिजी, यशोभद्रसूरिजी, संभूतिविजयजी, भद्रबाहुस्वामीजी आदि सूत्र व अर्थ से 14 पूर्वी हुए, जबकि भद्रबाह स्वामी के पट्टधर स्थूलभद्रस्वामी को सूत्र व अर्थ से 10 पूर्वो का ज्ञान था और शेष चार पूर्वो का सूत्र से ज्ञान था , अर्थ से नहीं ! कालक्रम से पूर्वो का ज्ञान कम होता गया / पू. वज्रस्वामी 10 पूर्वधर थे और आर्यरक्षितसूरिजी म. 9.5 पूर्व के ज्ञाता थे / संख्या पूर्वो के नाम हाथी प्रमाण स्याही से लिखे जा सके उत्पाद पूर्व अग्रायणीय पूर्व वीर्यप्रवाद पूर्व अस्ति नास्ति प्रवाद पूर्व ज्ञानप्रवाद पूर्व सत्यप्रवाद पूर्व आत्मप्रवाद पूर्व कर्मप्रवाद पूर्व प्रत्याख्यान प्रवाद पूर्व | - लल + 6 - 9. कर्मग्रंथ (भाग-1)) 105
SR No.035320
Book TitleKarmgranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2019
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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