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________________ संहरण: श की विचारणा ६१ होता है कि उसे श्रवणकर भौतिकता में निमग्न मानव भी त्याग मार्ग को स्वीकार कर लेते हैं । भगवान् श्री महावीर को जृ भिका गाँव के बाहर ऋजु बालिका नदी के किनारे शाल वृक्ष के नीचे केवलज्ञान - केवलदर्शन उत्पन्न हुआ । देवों ने केवलज्ञान महोत्सव किया। समवसरण की रचना हुई भगवान् ने यह जान कर कि यहाँ कोई भी चारित्र धर्म अगीकार करने वाला नही है, अतः एक क्षण तक प्रवचन किया । 32 पर किसीने भो चारित्र स्वीकारनही किया 1233 एतदर्थ ही प्रथमपरिषद् को अभावित कहा है। तीर्थंकर का प्रवचन पात्र की अपेक्षा से निष्कल गया, यह भी एक आश्चर्य है । २ १३४ (५) कृष्ण का अपरकंका गमन - सतीशिरोमणि द्रौपदी के रूप लावण्य की प्रशमा सर्वत्र फैल चुकी थी। नारद ऋषि ने भी सुनी और वह उसे निहारने के लिये राजप्रासाद में पहुँचे । दृढधर्मा द्रौपदी ने गुरु बुद्धि से नारद को नमस्कार नहीं किया । नारद ऋषि ने अपना अपमान समझा और वे कुपित हो गए। द्रौपदी को इस अपमान का फल चखाने के लिए नारद ने उपाय सोचा । धातकीखण्ड द्वीप के अपरककाधीश पद्मनाभ को जो परदार- लुब्ध था, द्रौपदी का रूप वर्णन करते हुए कहा-पाण्डवों की पत्नी द्रौपदी इतनी सुन्दर हैं, मान चांद का टुकडा हो । यदि तुम उसे प्राप्तकर सको तो तुम्हारे रणवास में चार-चांद लग जाएँगे ।" पद्मनाभ ने अपने मित्र देव की सहायता से सोई हुई द्रौपदी को अपने राजप्रासाद मे मंगवा लिया । द्रौपदी से भोग की भाषा में अभ्यर्थना की, पर पतिव्रता द्रौपदी ने उसे विवेकपूर्वक समझाकर रोका। द्रोपदी को राजप्रासाद में न पाकर पाण्डव चिन्तित हुए । यत्र-तत्र सर्वत्र खोज की, परन्तु द्रौपदी का कही अता-पता न लगा । द्वारिकाधीश श्री कृष्ण से निवेदन किया । कृष्ण ने उपहास करते हुए कहा - ' खेद है तुम पांच पति होते हुए भी द्रौपदी की रक्षा नहीं कर सके ।' फिर श्रीकृष्ण ने नारद ऋषि से पता पा लिया कि वह अपरकंका में है । पाण्डवों सहित श्रीकृष्ण वहाँ पहुँचे । नृसिह रूप बना श्रीकृष्ण ने पद्मनाभ को पराजित किया और वापस
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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