SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गर्भ संहरण : शक्र की विचारणा आकुल-व्याकुल हो गया। वह बोला-'हे काश्यप ! तू छह मास में पित्त व दाह-ज्वर से पीड़ित होकर मर जायेगा।' महावीर ने गंभीर गर्जना करते हुए कहा-'गोशालक ! मैं तो अभी सोलह वर्ष तक गंधहस्ती की तरह इस महीतल पर विचरण करूंगा, परन्तुस्मरण रखना, तू स्वयं सात रात्रि में पित्त-ज्वर से पीड़ित होकर छद्मस्थावस्था में ही काल करेगा। भगवान् की यह भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई। तेजोलेश्या के प्रभाव से भगवान् महावीर को भी छहमास तक पित्त-ज्वर व रक्तातिसार हो गया था।१८ केवलज्ञान प्राप्त होने के पश्चात् तीर्थकर का यह अतिशय होता है कि वे जहाँ भी रहते हैं वहाँ और उसके आस पास सौ योजन तक किसी भी प्रकार का वैरभाव, मृगी, रोग एवं दुर्भिक्ष आदि उपद्रव नहीं होता, पर भगवान महावीर को केवलज्ञान होने के पश्चात् और उन्हीं के समवसरण में यह उपसर्ग हुआ जो एक आश्चर्य है । (२) गर्भापहरण-द्वितीय आश्चर्य गर्भापहरण हैं। तीर्थकरों के गर्भ का अपहरण नही होता, पर श्रमण भगवान महावीर का हुआ। दिगम्बर परम्परा प्रस्तुत घटना को मान्य नही करती, पर श्वेताम्बर परम्परा के माननीय आगमों में इसका स्पष्ट उल्लेख है। आचाराङ्ग'२० समवायाङ्ग२१ स्थानाङ्ग'२२ आवश्यक नियुक्ति' २३ प्रभृति में स्पष्ट वर्णन है कि श्रमण भगवान महावीर बयासी [८२] रात्रिदिवस व्यतीत होने पर एक गर्भ से दूसरे गर्भ में ले जाये गये। भगवती सूत्र में देवानन्दा ब्राह्मणी का परिचय देते हुए भगवान महावीर ने गौतम से कहा-'हे गौतम ! देवानन्दा ब्राह्मणी मेरी माता है।' २४ जैनागमों की तरह वैदिक परम्परा में भी गर्भ परिवर्तन-विधियों का उल्लेख है । कंस जब वसुदेव की सन्तानों को समाप्त कर देता था,तब विश्वात्मा योगमाया को यह आदेश देता है कि वह देवकी का गर्भ रोहिणी के उदर में रखे। विश्वात्मा के आदेश व निर्देश से योगमाया देवकी का गर्भ रोहिणी के
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy