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प्रकाशकोय-प्रकाश
प्रबुद्ध पाठको के पाणि-पत्रों में चिर-अभिलषित-चिर प्रतीक्षित श्री कल्पसूत्र का सर्वाङ्ग-सुन्दर एवं महत्त्वपूर्ण श्रद्धास्निग्ध उपहार अर्पित करते हुए हम अपने को गौरवान्वित अनुभव करते हैं । अपनी तरह का यह एक अनुपम और अभूतपूर्व ग्रन्थ है, जो हिन्दी साहित्य को एक नवीन देन है। यहाँ पर यह उल्लेख करना अनुचित एव अप्रासांगिक न होगा कि हिन्दी में ही नहीं, अपितु किसी भी भाषा में कल्पसूत्र पर इस प्रकार शताधिक ग्रन्थों के विमलप्रकाश में लिखा गया ससन्दर्भ प्रामाणिक विवेचन अद्यावधि प्रकाशित नहीं हुआ है ।
प्रस्तुत प्रन्थ मे विद्वान् एव विचारक लेखक श्री देवेन्द्र मुनि जी, शास्त्री, साहित्य, रत्न ने कल्पसूत्र के सम्बन्ध में बहुप्रचलित भ्रान्तियां एव अज्ञानमूलक धारणाओं का परिष्कार तथा परिमार्जन ही नही किया, अपितु वह मत्य-तथ्य प्रकट किया जो आगम सम्मत है. इतिहास-सिद्ध है और प्रामाणिक ग्रन्थो से प्रमाणित है, एतदर्थ यह ग्रन्थरत्न नयी पीढी के नये विचारशील मनीषी युवको के लिए तथा श्रद्धाशील वृद्धों के लिए, एव भावनाशील महिलाओ के लिए पठनीय तथा मननीय है।
___ प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादक, श्रमण संघीय गम्भीर तत्त्व चिन्तक, प्रसिद्ध वक्ता, पण्डित प्रवर परम श्रद्धेय श्री पुष्कर मुनि जी म० के सुयोग्य शिष्य श्री देवेन्द्र मुनि जी हैं । वे कुशल लेखक, सुयोग्य सम्पादक एवं मधुर प्रवक्ता है। उनके द्वारा लिखित ऋषभदेव : एक परिशीलन, धर्म और दर्शन, सस्कृति के अचल मे, चिन्तन की चाँदनी साहित्य और संस्कृति प्रभृति ग्रन्थ अत्यधिक लोकप्रिय हुए है। मुनि श्री द्वारा सम्पादित दो दर्जन से भी अधिक ग्रन्थ हिन्दी, गुजराती एवं राजस्थानी भाषा में प्रकाशित हो चुके है। अन्य आवश्यक लेखन कार्य मे अत्यन्त व्यस्त होने पर भी हमारे प्रेम भरे आग्रह को सम्मान देकर कल्पसूत्र का अत्यन्त श्रम के साथ और हमारी भावना के अनुरूप सम्पादन किया, तदर्थ हम ग्रन्थ के दिशानिर्देशक सद्गुरुवर्य श्री पुष्कर मुनि जी म. के व सम्पादक देवेन्द्र मुनि जी के अत्यन्त आभारी हैं ।
ग्रन्थ को मुद्रणकला की दृष्टि से अधिकाधिक शुद्ध व सुन्दर बनाने में तथा प्रूफ सशोधन में श्रीचन्द्र जी सुगणा 'सरस' का मधुर सहयोग मम्प्राप्त हुआ है तथा सम्पादन आदि के लिए ग्रन्थोपलब्धि में श्री अमर जैन ज्ञान भण्डार, खा डप, श्री जिनदत्त सूरि ज्ञानमन्दिर, गढ़ सिवाना, श्री तारक गुरु ग्रन्थालय. पदगडा का स्नेहपूर्ण सहकार प्राप्त हुआ है जो सदा स्मरणीय रहेगा। साथ ही अर्थ सहयोगियो का उदार सहयोग विस्मरण नही किया जा सकता, जिनके उदात्त महयोग के कारण ही हम प्रस्तुत ग्रन्थ को इस रूप में प्रकाशित करवा सके हैं।
मुलतानमल रांका
मन्त्री
श्री अमर जैन आगम शोध संस्थान गढ़ सिवाना, जि० बाडमेर
( राजस्थान)