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समर्पण
सूर्य की तरह जिनका जीवन तेजस्वी था, चन्द्र की तरह जिनका मन सौम्य था, स्वर्ण की तरह जिनका आचार निर्मल था, सागर की तरह जिनके विचार गंभीर थे, मधु की तरह जिनकी वाणी मीठी थी, जो दूसरो के प्रति फूल से भी अधिक कोमल थे,
और अपनी संयम-साधना के प्रति .
वज्र से भी अधिक कठोर थे।
अपने उन परम गुरु परम श्रद्धेयरत्न महास्थविर, स्वर्गीय
पूज्यपाद श्री ताराचन्द्र जी महाराज
को सभक्तिभाव, समर्पित
विनयावत - देवेन्द्र भूमि