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________________ वाले भगवान के पूर्वमय सूत्र पर टीका करते हुए भगवान् पोट्टिल नामक राजपुत्र हुए लिखा है । भगवान् के जीव ने दो बार पोट्टिलाचाय के पास प्रव्रज्या ग्रहण की, पर स्वयं का नाम पोट्टिल था, यह समवायाङ्ग के अतिरिक्त आवश्यक नियुक्ति, चूर्णि आदि में नही मिलता । संभव है कि पोट्टिलाचार्य के पास प्रव्रज्या ग्रहण करने के कारण प्रियमित्र चक्रवर्ती ही पोट्टिल कहे गये हों। या प्रियमित्र का ही अपर नाम पोटिल हो, पर गुरु शिष्य का एक नाम होने से भ्रम न हो जाय, इस दृष्टि से नियुक्तिकार आदि ने यह नाम न दिया हो। हमारी दृष्टि से प्रियमित्र ही पोटिल होना चाहिए, क्योंकि वे ही छ? भव में आते हैं । और प्रियमित्र व पोट्टिल दोनों की श्रमण-पर्याय एक वर्षकोटि की है, जो यह सिद्ध करती है कि वे दोनों पृथक्-पृथक् नही थे। (२३) महाशुक्र __ वहां से आयु पूर्णकर वह महाशुक्र कल्प के सर्वार्थ विमान में समुत्पन्न हुए । समवायाङ्ग में महाशुक्र के स्थान पर सहस्रार कल्प के सर्वार्थविमान का उल्लेख है । आचार्य अभयदेव ने नाम निर्देश नहीं किया हैं। उत्तरपुराणकार ने भी समवायाङ्ग की तरह ही सहस्रारकल्प का निर्देश किया है। नियुक्तिकार ने महाशुक्र का नाम न देकर "सव्व?" ही लिखा है।" आचार्य जिनदास महत्तर व आचार्य मलयगिरि ने महाशुक्रकल्प का अर्थ सर्वार्थविमान किया है । सतरह सागरोपम तक वहाँ देव सम्बन्धी सुखों का उपभोग करते रहे। (२४) नन्दन वहाँ से च्यवकर भरत क्षेत्र की छत्रानगरी में जितशत्रु सम्राट की भद्रा महारानी की कुक्षि में उत्पन्न हुए। नन्दन नाम रखा गया।९२ पच्चीस लक्ष वर्ष की उम्र हुई। चौबीस लक्ष वर्ष तक गृहवास में रहे एक लक्ष वर्ष अवशेष रहने पर पोट्टिलाचार्य के पाम संयम ग्रहण किया।९४ एक लाख वर्ष तक निरन्तर मास खमण की तपस्या की ।१५ ग्यारह लाख साठ हजार मास खमण हुए, और तीन हजार तीन सौ तेतीस वर्ष तीन मास उनतीस दिन
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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