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कल्प सूत्र
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नन्दी राजकुमार हैं । यह सुनकर विश्वभूति को सारे रहस्य का परिज्ञान हो गया कि युद्ध के बहाने मुझे यहां से निकाला गया है। उसने कुपित होकर वहीं पर कपित्थ ( कैथ) के वृक्ष पर एक जोरदार प्रहार किया, जिससे सारे कपित्थ के फल भूमि पर गिर पड़े। उसने द्वारपालों को ललकारते हुए कहा" इसी प्रकार मैं तुम्हारे सिर को नष्ट कर सकता हूँ, पर राजा के गौरव की रक्षा के लिए ऐसा नहीं करता । मुझसे मांगकर यह उद्यान लिया जा सकता था । परन्तु इस प्रकार छल-छद्म करना अनुचित है ।" विश्वभूति को इस अपमान से बड़ा आघात लगा । संसार से विरक्ति हो गई । उसने आर्य संभूति स्थविर के पास संयम ग्रहण कर लिया । उत्कृष्ट तप से आत्मा को भावित करते हुए अनेक लब्धियाँ प्राप्त की । १७
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एक समय विहार करते हुए विश्वभूति अनगार मथुरा नगरी में आये । इधर विशाखनन्दी कुमार भी वहाँ की राजकन्या से विवाह करने बहाँ आया और मुख्य मार्ग पर स्थित राजप्रासाद में ठहरा। विश्वभूति अनगार मासिकव्रत के पारणा हेतु घूमते हुए उधर निकल आये । विशाखनन्दी के अनुचरों ने मुनि को पहचान कर उसे संवाद सुनाया। मुनि को देखते ही उसके अन्तमनस में क्रोध की आँधी उठी। सरोष नेत्रों से वह मुनि को देख ही रहा था कि सद्यःप्रसूता गाय की टक्कर से विश्वभूति अनगार पृथ्वी पर गिर पडे । गिरे हुए मुनि का उपहास करते हुए, विशाखनन्दी कुमार ने कहा- "तुम्हारा वह पराक्रम, जो कपित्थ को तोड़ते समय देखा था, आज कहाँ गायब हो गया है ?" और वह खिलखिला कर हँस पड़ा ।" विश्वभूति अनगार ने भी आवेश में आकर गाय के श्रृङ्गों को पकड़ कर, चक्र की तरह घुमाकर आकाश में उछाल दिया और कहा - "क्या दुर्बल सिंह शृगाल से भी गया गुजरा होता है ? यह दुरात्मा आज भी मेरे प्रति दुर्भावना रखता है ? यदि मेरे तप-जप व ब्रह्मचर्य का फल हो तो आगामी भव में अपरिमित बल वाला बनु । ७० इस प्रकार निदान कर इस दोष की आलोचना किये बिना ही उन्होंने आयु पूर्ण की। (१७) महाशुक्र देवलोक
वहाँ से आयुपूर्णकर महाशुक्र कल्प में उत्कृष्ट स्थिति वाला देव हुआ । "