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________________ भगवान के पूर्वभव ३३ (१६) विश्वभूति देवलोक की आयु पूर्ण होने पर लम्बे समय तक संसार में परिभ्रमण करने के पश्चात् वह राजगृह नगर में विश्वनन्दी राजा के भ्राता तथा युवराज विशाखभूति का पुत्र विश्वभूति हुआ । राजा विश्वनन्दी के पुत्र का नाम विशाखनन्दी था । एक समय विश्वभूति पुष्प करंडक उद्यान में अपनी पत्नियों के साथ उन्मुक्त-क्रीडा कर रहा था। महारानी की दासियां उस उद्यान में पुष्प आदि लेने के लिए आयी, उन्होंने विश्वभूति को यों सुख के सागर में तैरता हुआ देखा तो ईर्ष्या से उनका मुख म्लान हो गया, उन्होंने राजरानी से कहा"महारानीजी ! सच्चा सुख तो विश्व भूति कुमार भोगता है। विशाखनन्दी को राजकुमार होने पर भी विश्वभूति की तरह सुख कहां है ? कहलाने को आप भले ही अपना राज्य कहें, पर सच्चा राज्य तो विश्वभूति का है।" दासियों के कथन से रानी के हृदय में ईर्ष्याग्नि भड़क उठी। वह आपे से बाहर हो गई। राजा ने उसको शान्त करने का प्रयास किया, पर वह कड़क कर बोली-"जब आपके रहते यह स्थिति है तो बाद में क्या होगा ?" राजा ने समझाया-"यह हमारी कुल-मर्यादा के प्रतिकूल है, जब तक प्रथम पुरुष अन्तःपुर सहित उद्यान में है तब तक द्वितीय पुरुष उसमें प्रवेश नही कर सकता।" अन्त में अमात्य ने प्रस्तुत समस्या को सुलझाने के लिए अज्ञात मनुष्यों के हाथ राजा के पास कृत्रिम लेख पहुँचाया । लेख पढ़ते ही राजा ने युद्ध की उद्घोषणा की। रणभेरी बज गई । वह यात्रा के लिए प्रस्थान करने लगा। विश्वभूति को यह सूचना मिलते ही वह उद्यान से निकलकर राजा के पास पहुँचा । राजा को रोककर स्वयं युद्ध के लिए चल दिया। युद्ध के मैदान में किसी भी शत्रु को न देखकर वह पुनः दलबल सहित लौट आया। इधर विश्वभूति के जाने के पश्चात् राजकुमार विशाखनन्दी ने अन्तःपुर सहित उद्यान में अपना डेरा डाल दिया। विश्वभूति उद्यान में प्रवेश करने लगा तो दण्डधारी द्वारपालों ने रोक दिया। कहा-अन्दर सपत्नीक विशाख
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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