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कल्प सूत्र
इसके जाप से पाप नष्ट होता है, बुद्धि की शुद्धि होती है, लक्ष्मी की वृद्धि होती है, सिद्धि की उपलब्धि होती है, आरोग्य की प्राप्ति होती है, चिन्ताएँ नष्ट होती हैं । भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, डाकिनी शाकिनी आदि सभी प्रकार के उपद्रवों का उपशमन होता है । लौकिक और लोकोत्तर सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते है । लिन से मलिन एवं पतित-से पतित आत्मा भी नमस्कार मंत्र के जाप से निर्मल तथा पवित्र हो जाता है ।
आचार्य कहते है — 'नमस्कार महामंत्र के एक अक्षर का ध्यान करने से भी सात सागरोपम काल में किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं । सम्पूर्ण महामंत्र का ध्यान करने से पाँच सौ सागरोपम काल में मञ्चित पापों का विनाश होता है ।" जो नमस्कार महामंत्र का निष्कामभाव से विधिपूर्वक एक लाख बार जाप करता है, उसकी अर्चना करता है, वह तीर्थकरनामकर्म की उपार्जना करता है, वह शाश्वत धाम (मुक्ति) को प्राप्त होता है । जो भावुक भक्त आठ करोड़, आठ हजार, आठ सौ आठ बार नमस्कार महामन्त्र का जाप करता है वह तीसरे भव में मोक्ष प्राप्त करता है ।
जैन आगम व आगमेतर साहित्य में ऐसी अनेक कथाएँ विद्यमान हैं जिनमें नमस्कार महामन्त्र का अद्भुत प्रभाव प्रदर्शित किया गया है। महामंत्र के प्रबल प्रभाव से ही श्रेष्ठी सुदर्शन ने शूली को सिंहासन के रूप में परिणत किया था । नाग जैसे क्षुद्र जीव को भी धरणेन्द्र की पदवी प्राप्त हुई थी । सती सुभद्रा ने कच्चे धागों से छलनी को बाँध कर कुएँ मे पानी निकाला था और चम्पा के द्वार खोले थे। सती मीता ने अग्नि कुण्ड को जल-कुण्ड के रूप में बदल दिया था। आग की लपलपाती लपटें भी बर्फ-सी शीतल हो गई थी । मती श्रीमती ने भयंकर विषधर को सुमन-माला के रूप में परिवर्तित कर दिया था । इसी महामन्त्र के चमत्कार से ही श्रीपाल और मैना सुन्दरी का जीवन सुखी बना था । द्रौपदी का चीर बढ़ा था । विष को पीयूष, शत्रु को मित्र, अग्नि को पानी, दुःखी को मुखी बनाने वाला दिव्यप्रभावशाली यह महामन्त्र नमस्कार ही है ।
यह महामन्त्र अनादि है, भूतकाल में अनन्त तीर्थंकर हुए हैं, भविष्य
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