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________________ ॥ नमः श्री सर्वज्ञाय॥ णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आयरियाणं णमो उवज्झायाणं णमोलोए सव्वसाहूणं एसो पंचनमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं ॥१॥ अर्थ-अरिहन्तों को नमस्कार हो । सिद्धों को नमस्कार हो। आचार्यों को नमस्कार हो। लोक में स्थित सर्व साधुओं को नमस्कार हो । यह पंच नमस्कार सर्व पापों को नाश करने वाला और सर्वमंगलों में प्रथम मंगल है। विवेचन-नमस्कार महामन्त्र, जैन संस्कृति का एक सर्वमान्य प्रभाबशाली मन्त्र है। यह संसार के समस्त मन्त्रों में मुकुटमणि के समान है। कल्पतरु, चिंतामणि, कामकुम्भ और कामधेनु के समान समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। लोक में अनुपम है। आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करने वाला अमोघमन्त्र है।
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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