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३ अलंकृत - स्वर विशेष से अलंकृत होकर
गाया जाय ।
४ व्यक्तं
- स्पष्ट गाया जाय ।
५ अविघुष्टं - अविपरीत स्वर से गाया
जाय ।
६ मधुरं - कोकिला की तरह मधुर गाया
जाय ।
७ समं-ताल, वंश, व स्वर से समत्व गाया
जाय ।
८ सुललितं - कोमल स्वर से गाया जाय । अन्य आठ गुण:
१ उरोविशुद्ध - वक्षस्थल से विशुद्ध होकर निकलना । २ कण्ठविशुद्ध - जो स्वर भंग न हो । ३ शिरोविशुद्ध - मूर्धा को प्राप्त होकर भी जो स्वर-नासिका से मिश्रित नही होता ।
४ मृदुक- जो राग कोमल स्वर से गाई
जाय ।
५ रिङ्गित - आलाप के कारण स्वर अठखेलिया करता-सा प्रतीत हो । ६ पदबद्ध - जो गेय पद विशिष्ट लालित्य युक्त भाषा में निर्मित किये गये हों ।
७ समताल प्रत्युत्क्षेप - नर्तकी का पादनिक्षेप और ताल आदि परस्पर मिले हों।
८ सप्त स्वर सीमर - सातों स्वर अक्षरादि से मिलान खाते हों । अक्षरादि सम भी सात प्रकार का है:१ अक्षर-सम- ह्रस्व, दीर्घ, प्लुत, सानुनासिका से युक्त ।
३
२ पद - सम-- पद विन्यास से युक्त । ताल - सम-ताल के अनुकूल कर आदि का हिलाना ।
४ लय- सम- वाद्य यन्त्रों के साथ स्वर मिलाकर गाना |
५ ग्रह- सम-वांसुरी या सितार की तरह गाना ।
६ निश्वसितोच्छ्वसितो सम-श्वास ग्रहण करने और निकालने का क्रम व्यवस्थित |
७ संचार - सम-वाद्य यत्रों के साथ गाना
- स्थानाङ्ग ७।३:२५ - अनुयोगद्वार गा० ७
प्रकारान्तर से अन्य आठ गुण:१ निर्दोषं - गीत के बत्तीस दोष से रहित
गाना ।
२ सारवन्तं -- विशिष्ट अर्थ से युक्त गाना | ३ हेतुयुक्तं - गीत से निबद्ध, अर्थ का गमक और हेतु युक्त ।
४ अलंकृतं - उपमादि अलंकारों से युक्त । ५ उपनीतं - उपनय से युक्त ।
६ सोपचार- कठिन न हो, विशुद्ध हो । ७ मितं - सक्षिप्त व सार युक्त । ८ मधुरं - योग्य शब्दों के चयन से श्रुति
मधुर ।
—स्थानाङ्ग
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छन्द के तीन प्रकारः-
१ सम-चारों पाद के अक्षरों की संख्या
समान ।