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नि० गा० ६५३-६५४ । ३८. आ० नि० गा० ६५५.६५६ । ३६. आ०नि० गा० ६५३ । ४०. आ० नि० गा०६४७ । ४१. आ० नि० गा० ६४८ । ४२. आ०नि० गा० ६४४ । ४३ आ०नि०गा० ६. ४४. आ०नि० गा०६५३-६५४ । ४५. आ०नि० गा० ६५५ । ४६. आ०नि० गा०६४४ । ४७. आ० नि० गा०६४९ । ४८. आ० नि० गा० ६४७ । ४६. आ०नि० गा० ६४८ । ५०. आ०नि० गा० ६५० ५१. आ०नि० गा० ६५५-६५६ । ५२ आ० नि० गा० ६४४ । ५३. आ०नि० गा० ६४८ । ५४. आ. नि० गा० ६४७ । ५५. आ०नि० गा० ६४८ । ५६. आ०नि० गा०६५० । ५७. आ०नि० गा० ६५५-६५६ । ५८. आ० नि० गा० ६४५ । ५६. आ० नि० गा० ६४६ । ६०. आ० नि० गा० ६४७ ६१. आ०नि० गा० ६४८ । ६२. आ. नि. गा० ६५१ । ६३. आ०नि० गा० ६५५-६५६ । ६४. आ० नि० गा०६४५ । ६५ आ०नि० गा०६४६ । ६६. आ०नि० गा०६४७।६७. आ०नि० गा० ६४८ ६८. आ०नि० गा०६५१ । ६६. आ०नि० गा० ६५५-६५६ । ७.A. वीर निर्वाण संवत् को जानने का तरीका यह है कि वि० स० मे ४७० मिलाने पर, शक सवत्
में ६०५ और ई. स. मे ५२७ मिलाने पर वोनि सवत् मिल जाता है। जैसे वर्तमान वि० स० २०२५ मे ४७० शक १८६० में ६०५ और १९६८ मे ५२७ मिलाने पर वोर संवत्
२४६५ आ जाता है। ७० B. मण परमोहि पुलाए, आहार खवग उसमे कप्पे। संजमतिग केवल सिज्मणा य जम्मि वुच्छिण्णा ।
-जैन परपरानो इतिहास भा० १ पृ० ७२ मे उघृत, (त्रिपुटी) ७१. स्थविर सुस्थित गृहस्थाश्रम मे काटिवर्ष नगर के रहने वाले थे, अतः वे कोटि क नाम से पहचाने
जाते थे । स्थविर सुप्रतिबुद्ध गृहस्थाश्रम मे कावन्दी नगर के निवामी थे, अतः वे काकन्दक नाम से
विश्रुत थे। ७२. 'ताम्रलिप्तिका' शाखा की उत्पत्ति बंग देश की उस समय की राजधानी ताम्रलिप्ति या ताम्र
लिप्तिका से हुई थी। उस युग मे वह एक प्रसिद्ध बन्दरगाह था। वर्तमान में वह बंगाल के मेदिनीपुर जिले में 'तमलुक' नाम का गाव है ।
__ कोटिवर्षीया शाखा की उत्पत्ति गठ देश को राजधानी कोटिवर्ष नगर से हुई थी। वर्तमान मे वह पश्चिमी बंगाल में मुर्शिदाबाद के नाम से प्रसिद्ध है।
पौण्डवर्धनिका शाखा की उत्पत्ति पुण्ड्रवर्धन नगर से हुई थी। वर्तमान में वह उत्तरी बंगाल के (फिरोजाबाद) माल्दा से ६ मील उत्तर की ओर 'पाण्डुआ' नाम के पांव से पहचाना जाता है । उस युग मे इसमे राजशाही, दीनाजपुर, रंगपुर, नदिया, वीरभूम, मिदनापुर, जंगलमहल, पचेन और चुनार सम्मिलित थे। एक अन्य निद्वान के मतानुसार (जैन परंपरानो इतिहास भा० १ पृ० २०५) वर्तमान पहाड़पुर (बंगाल के वोगरा जिला R. B. R के स्टेशन से ३ मील दूर) पोंड्रवद्धन नगर का वर्तमान अवशेष है ।
'दामी कपंटक' शाखा की उत्पत्ति बगाल के समुद्र के सनिकटवर्ती 'दासी कर्पट' नामक स्थान से हुई है। ७३. दशाश्रुतस्कंध, चूणि