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दसणविणए आवस्सए य सीलव्वए निरइयारो। खणलवतवच्चियाए वेयावच्चे समाही य ।। अप्पुठवनाणगहणे सुयभत्ती पवयणे पहावणया ।
एहि कारणेहि तित्थयरत्तं लहइ जीवा ॥ -ज्ञातृ धर्म कथाग, सूत्र ११ १३०. उम्गतवसंजम च ओ, पगिट्ठफलसाहगस्सवि जियस्म ।
धम्मविसए वि सुहुमावि होइ माया अणत्याय ।। जह मल्लिस्म महाबलभवम्मि, तित्थयर नाम बंधेऽदि ।
तवविसय थोवमाया, जाया जुवइत्त हेउ ति ॥ - ज्ञातृधर्म कथाङ्ग १११६ १३१. देखिए ज्ञातृ धर्म कथाङ्ग १% १३२. (क) महावोर चरियं, गुणचन्द्र गा० ५ ५० २५१।१
(ख) महावीर चग्यिं, नेमिचन्द्र गा० ८६ पत्र ५६ (ग) न सर्वविरतेरहं कोऽप्योति विदन्नपि ।
कल्प इत्यकरोतत्र निषण्णो देशना विभुः ॥ -त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र १०।५।१०।६४ १३३ आवश्यक नियुक्ति गा० २८७, पृ० २०६ १३४. दिगम्बर मान्यतानुसार भगवान महावीर ने केवलज्ञान होते ही उपदेश नही दिया । छियासठ
दिन के पश्चात् श्रावण कृष्णा प्रतिपदा को जब इन्द्रभूति गोतम उन्हे गणधर के रूप में प्राप्त हुए तब प्रथम दिव्योपदेश दिया। धवल सिद्धान्त और तिलोयपपणत्ति में प्रस्तुत तिथि को धर्मतीर्थोत्पत्ति तिथि माना है । अवसपिणी के चतुर्थकाल के अन्तिम भाग मे तेंतीस वर्ष आठ माह और पन्द्रह दिन शेष रहने पर वर्ष के श्रावण नामक प्रथम महीने में कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के दिन अभिजित् नक्षत्र के उदित रहने पर धर्म तीर्थ की उत्पत्ति हुई :
बासस्स पढममासे पढमे पक्खम्मि मावणे बहले।
पाडिवदपुब्बदियसे तित्थुप्पत्ती दु अभिजम्हि ॥ -धवला टीका, प्रथमभाग पृ० ६३ १३५. ज्ञातासूत्र श्रुत० १ अ० १६ १३६ (क) कोसंबि चंदसूरोअरणं ।
-आवश्यक नियुक्ति गा० ५१६-२६४ (ख) त्रिषष्टि० १०।८।३३७-३५३ ५० ११०-१११ ___ साहावियाई पच्चक्ख दिस्समाणाणि आरुहेउण ।
ओयरिया भत्तोए वंदणवडियाए ससिसूरा ॥ ६ ॥ तेसि विमाणनिम्मल मऊह निवहप्पयासिए गयणे । जायं निसिपि लोगो अवियाणतो सुणइ धम्मं ॥१०॥ नवरं नाउ समयं चंदणबाला पवत्तिणी नमि। सामि समणीहि समं निययावासं गया सहसा ॥११॥ सा पुण मिगावई जिणकहाए वक्खित्तमाणसा धणिय । एगागिणी चिय ठिया विणंति काऊण ओसरणे ॥१२॥
-महावीर परियं (गुणचन्द्र) प्रस्ताव -पत्र २७५