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________________ दिन भी परस्पर में यदि कठोर, कटुक शब्दों से कलह हो गया हो, लड़ाई झगड़ा हो गया हो, तो लघु को तुरन्त ही बड़ों के पास जाकर विनयपूर्वक खमाना चाहिए और यदि बड़ों से कुछ भूल हुई हो तो उन्हें लघु को स्नेह पूर्वक खमाना चाहिए। मूल में 'खमियव्वं' खामियव्वं के द्वारा दो बातों का निर्देश किया है, दूसरों के कटुवचन आदि को स्वयं खमना-सहन करना चाहिए और अपने कटु वचन आदि को दूसरों को खमाना चाहिए । और स्वयं को उपशान्त करना चाहिए तथा दूसरों को भी उपशान्त कराना चाहिए। यदि सार्मिकों में परस्पर कलह शान्त नहीं होता है तो उससे उनके तप, नियम, ब्रह्मचर्य, स्वाध्याय आदि ज्ञान-दर्शन चारित्र की हानि होती है संसार की वृद्धि होती है और लोकों में उनकी अप्रीति-अश्रद्धा उत्पन्न होती है। इसीलिए भगवान ने कहा है-श्रमण धर्म का सार उपशम–शान्ति है । परस्पर क्षमा याचना करने से आत्मा में प्रसन्नता की अनुभूति होती है । मूल: वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तओ उवस्सया गिण्हित्तए, वेउब्विया पडिलेहा साइज्जिया पमज्जणा ॥२८॥ अर्थ-वर्षावास में रहे हुए निग्रन्थों और निर्ग्रन्थिनियों को तीन उपाश्रय ग्रहण करना कल्पता है । तीन उपाश्रयों में से दो उपाश्रयों की प्रतिदिन सम्यकतया प्रतिलेखना करनी चाहिए और जिस उपाश्रय का उपयोग किया जाता है उसकी प्रमार्जना करनी चाहिए । विवेचन-वर्षावास में जीवों की उत्पति अधिक मात्रा में होती है। संभव है जिस स्थान में श्रमण अवस्थित है, उस स्थान पर जीवों की उत्पत्ति हो गई तो वह जिन दो अन्य स्थानों का अवग्रह लेकर रखता है उसमें जा
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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