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कल्प सूत्र
जिनकल्पिक श्रमण नग्न, निष्प्रतिकर्म और विविध अभिप्रहधारी होते हैं । उनके दो प्रकार हैं
(१) पाणिपात्र - हाथ मे भोजन करने वाले ।
(२) पात्रधारी - पात्र में भोजन करने वाले ।
पाणिपात्र जिनकल्पिक श्रमण भी उपधि की दृष्टि से चार प्रकार के होते हैं । कितने ही श्रमण मुख- वस्त्रिका और रजोहरण - ये दो उपधि रखते हैं। कितने ही श्रमण मुख- वस्त्रिका, रजोहरण और एक चद्दर रखते है । कितने ही श्रमण मुख वस्त्रिका, रजोहरण और दो चद्दर रखते हैं, और कितने ही श्रमण मुख वस्त्रिका, रजोहरण तथा तीन चद्दर रखते हैं ।
पात्रधारी जिनकल्पिक श्रमण भी उक्त दो, तीन, चार, और पाँच उपकरणों के अतिरिक्त सात प्रकार के पात्र - निर्योग रखने से क्रमशः नौ, दस, ग्यारह, और बारह प्रकार की उपधि से उनके भी चार भेद होते हैं। इस प्रकार जिनकल्पिक श्रमणों के मुख्य दो, और उत्तर भेद आठ होते हैं ।
आगमानुसार स्थविरकल्पिक श्रमण के भी उपधि की दृष्टि से अनेक भेद किए जा सकते हैं। कितने ही श्रमण तीन वस्त्र और एक पात्र रखते थे। कितने ही श्रमण दो पात्र और एक वस्त्र रखते थे और कितने ही श्रमण एक पात्र और एक वस्त्र रखते 1
उपरोक्त चर्चा का सार यह है कि जिनकल्पिक हो या स्थविरकल्पिक, वे कम से कम मुख वस्त्रिका और रजोहरण ये दो उपकरण तो रखते ही हैं। अतः यहाँ पर आचेलक्य-कल्प का अर्थ संपूर्ण वस्त्रो का अभाव नही, किन्तु अल्प मूल्य वाले प्रमाणोपेत जीर्ण-शीर्ण वस्त्र धारण करना है ।
पूर्वाचार्य रचित कल्पसमर्थन में कहा है कि - प्रथम और अन्तिम तीर्थकर का धर्म (आचार) अचेलक है और बावीस तीर्थंकरो का धर्म ( आचार) सचेलक और अचेलक दोनों प्रकार का है ।" इसका अर्थ यह है कि भगवान् ऋषभदेव और भगवान् महावीर के श्रमणों के लिए यह विधान है कि वे श्वेत और प्रमाणोपेत वस्त्र रखे, पर बावीस तीर्थंकरों के श्रमणों के लिए प्रस्तुत विधान नही है । १० वे विवेक-निष्ठ और जागरूक साधक थे । अतः चमकीले रंगबिरंगे प्रमाण से अधिक वस्त्र भी रख सकते थे । उन बढिया वस्त्रों के प्रति उनके मन में आसक्ति नहीं होती थी ।
उत्तराध्ययन सूत्र में भगवान् पार्श्वनाथ के श्रमण केशीकुमार और भगवान महावीर के प्रधान अन्तेवासी गणधर गौतम का मधुर संवाद है । केशीकुमार श्रमण ने गौतम से जिज्ञासा प्रस्तुत की, कि "भगवान् महावीर का धर्म अचेलक है और भगवान् पार्श्वनाथ का सचेलक है। क्या इस लिंग भेद को देख कर आपके मानस में शंका नहीं होती ?११