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निग्गंथीण वा जाव उवस्सयाओ सत्तघरंतरं संखडिसन्नियट्टचारिस्स एत्तए । एगे पुण एवमाहंसु - नो कप्पड़ जाव उवस्सयाओ परेण संखडि सन्नियट्टचारिस्स एत्तए । एगे पुण एवमाहंसु-नो कप्पइ जाव उवस्सयाओ परंपरेण संखर्डि सन्नियट्टचारिस्स एत्तए ।। २५२ ॥
कल्प सूत्र
अर्थ — वर्षावास में हुए निषिद्ध घर का त्याग करने वाले निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थिनियों को उपाश्रय से लेकर सात घर तक जहाँ सखडि ( जीमनवार ) हो, वहाँ जाना नहीं कल्पता । कितने ही ऐसा कहते हैं कि उपाश्रय से लगाकर आगे आने वाले घरों में जहां संखडि हो वहाँ निषिद्ध घर का त्याग करने वाले निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थिनियों को जाना नहीं कल्पता । कितने ही ऐसा भी कहते हैं कि उपाश्रय से लगा कर परम्परा से आते हुए घरों में जहां जीमनवार होती हो वहां निषिद्ध घर का त्याग करने वाले निर्ग्रन्थ और निग्रन्थिनियो को जाना नहीं कल्पता ।
मूल :
वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ पाणिपडिग्गहियस्स भिक्खुस्स कणगफुसिय मित्तमवि वुट्टिकायंसि निवयमाणंसि गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खभित्तए वा पविसित्तए वा । २५३ |
अर्थ – वर्षावास में रहे हुए कर पात्रो भिक्षुक को, कणमात्र भी स्पर्श हो इस प्रकार का वृष्टिकाय (ओस और घुन्ध ) गिरता हो तब गृहपति के कुल की ओर भोजन और पानी के लिए निकलना और प्रवेश करना नही
कल्पता । १२
मूल
:
वासावासं पज्जोसवियरस पाणिपडिग्गाहियस्स भिक्खुस्स