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स्थविरावली : विभिन्न शाखाएं :मार्यकालक थेरे अंतेवासी गोयमसगोत्ते । थेरस्सणं अज्जदिन्नस्स गोयमसगोत्तस्स इमे दो थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिनाया वि होत्था, तं जहा-थेरे अज्जसंतिसेणिए माढरसगोत्ते थेरे अज्जसीहगिरी जाइस्सरे कोसियगोत्ते। थेरेहितो णं अज्जसंतिसेणिएहिंतो णं माढरसगोहितो एत्थ णं उच्चानागरी साहा निग्गया ॥२१८॥
अर्थ-काश्यपगोत्री स्थविर आर्य इन्द्रदत्त के गौतम गोत्रीय स्थविर आर्य दिन्न (दत्त) अन्तेवासी थे।
गौतम गोत्रीय स्थविर आर्य दिन के ये दो स्थविर पूत्र समान एवं प्रख्यात अन्तेवासी थे। आर्य संत्तिसेणिय [शान्तिश्रेणिक] स्थविर माढरगोत्री और जातिस्मरण ज्ञान वाले कौशिक गोत्री स्थविर आर्य सिंहगिरि ।
माढरगोत्री [माठरगोत्री] स्थविर आर्य शान्ति श्रेणिक से उच्चानागरी शाखा प्रारम्भ हुई। --. आर्य कालक
विवेचन- आर्य दिन्न (इन्द्रदत्त) एक प्रतिभा सम्पन्न आचार्य थे। आपने दक्षिण में कर्नाटक पर्यन्त सुदूर प्रदेशों में धर्म की ध्वजा फहराई थी। आपका विशेष परिचय उपलब्ध नहीं है। आर्य सन्तिसेणिय (शान्तिश्रेणिक) से उच्चा नागर शाखा का प्रादुर्भाव हुआ। इसी शाखा में प्रतिभामूर्ति आचार्य उमास्वाति हुए, जिन्होने सर्व प्रथम दर्शन शैली से तत्त्वार्थ सूत्र का निर्माण किया।
आपके ही निकट समय में आर्यकालक, आर्य खपुटाचार्य, इन्द्रदेव, श्रमणसिंह, वृद्धवादी और सिद्धसेन आदि आचार्य हुए हैं।
आर्य कालक के नाम से चार आचार्य हुए हैं। प्रथम कालक, जिनका दूसरा नाम श्यामाचार्य भी विश्रुत है, और जिन्होंने प्रज्ञापना सूत्र का निर्माण किया। ये द्रव्यानयोग के विशिष्टज्ञाता थे। कहा जाता है कि शकेन्द्र ने एक बार भगवान् श्री सीमन्धर स्वामी से निगोद पर गम्भीर विवेचन सुना । उन्होंने यह जिज्ञासा व्यक्त की कि इस प्रकार की व्याख्या भरत क्षेत्र में कोई कर