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________________ ३०२ वच्छलिज्ज 'वस्त्रलीय' कुल, तृतीय वाणिज्ज 'वाणिज्य'" कुल, और चतुर्थ प्रश्नवाहनक 'प्रश्नवाहन' कुल । मल: थेराणं सुढियसुपडिबुद्धाणं कोडियकाकंदाणं वग्यावच्चसगोत्ताणं इमे पंच थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्था, तं जहा-थेरे अज्जइंददिन्न थेरे पियगंथे थेरे विज्जाहरगोवाले कासवगोत्ते णं थेरे इसिदत्ते थेरे अरहदत्ते । थेरेहितो णं पियगंथेहिंतो एत्थ णं मज्झिमा साहा निग्गया। थेरेहिंतो णं विज्जाहरगोवालेहितो तत्थ णं विज्जाहरी साहा निग्गयां ॥२१७॥ अर्थ- कोटिककाकंदक कहलाने वाले और वग्घावच्च (व्याघ्रापत्य) गोत्रीय स्थविर सुस्थित तथा सुप्रतिबुद्ध के ये पांच स्थविर पुत्र समान एव प्रख्यात अन्तेवासी थे। जैसे (१) स्थविर आर्य इन्द्रदिन्न, 'इंद्रदत्त' (२) स्थविर पियगंथ, "प्रियग्रन्थ' (३) स्थविर विद्याधर गोपाल काश्यपगोत्री, (४) स्थविर ईसीदत्त 'ऋषिदत्त' (५) और स्थविर अरहदत्त 'अर्हदत्त। ___ स्थविर प्रियग्रन्थ से यहाँ मध्यमाशाखा निकली । काश्यपगोत्री स्थविर विद्याधर गोपाल से विद्याधरीशाखा प्रारम्भ हुई। विवेचन-आचार्य इन्द्रदिन्न (इन्द्रदत्त) युग प्रभावक आचार्य थे । आपके जीवन के सम्बन्ध में विशिष्ट जानकारी प्राप्त नहीं है। आपके लघु गुरुभ्राता आर्य पियगंथ (प्रियग्रन्थ) भी अपने युग के परम प्रभावक युग पुरुष थे। आपने हर्षपुर में होने वाले अजमेध का निवारण किया और हिंसाधर्मी ब्राह्मणविज्ञों को अहिंसा धर्म का पाठ पढ़ाया। मल: थेरस्स णं अज्जइंददिन्नस्स कासवगोत्तस्स अज्जदिन्न
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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