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________________ इसिगुत्ते सिरिगुत्ते, गणी य बंभे गणो य तह सोमे । दस दो य गणहरा, खलु एए सीसा सुहत्थिस्स ॥२॥२१०॥ अर्थ-वासिष्ठ गोत्रीय स्थविर आर्य सुहस्ती के पुत्र समान एवं प्रख्यात ये बारह स्थविर अन्तेवासी थे। जैसे (१) स्थविर आर्य रोहण, (२) जसभद्र (भद्रयशा), (३) मेहगणी (मेघगणी), (४) कामिड्ढि (कामादि), (५) सुस्थित, (६) सुप्पडिबुद्ध (प्रतिबुद्ध), (७) रक्षित, (८) रोहगुप्त, (६) ईसीगुप्त (ऋषिगुप्त). (१०) सिरिगुप्त (श्री गुप्त), (११) बंभगणि (ब्रह्मणि), (१२) और सोमगणि, बारह गणधर के समान, ये बारह शिष्य सुहस्ती के थे। विवेचन-इन बारह शिष्यों में आर्य सुस्थित और आर्य सुप्पडिबुद्ध (सुप्रतिबुद्ध) ये दोनों आचार्य बने। ये दोनों काकंदी नगरी के निवासी थे, राजकुलोत्पन्न व्याघ्रापत्य गोत्रीय सहोदर थे। कुमारगिरि पर्वत पर दोनों ने उग्र तप साधना की । संघ संचालन का कार्य सुस्थित के अधीन था और वाचना का कार्य सुप्रतिबुद्ध के । हिमवन्त स्थविरावली के अभिमतानुसार इनके युग में कुमारगिरि पर एक छोटा-सा श्रमण सम्मेलन हुआ था। और द्वितीय आगम वाचना भी। ३१ वर्ष की अवस्था में आर्य सुस्थित ने प्रव्रज्या ग्रहण की, १७ वर्ष साधारण श्रमण अवस्था में रहे और ४८ वर्ष आचार्य पद पर रहे ९६ वर्ष की अवस्था में वीर स० ३३६ में कुमारगिरि पर्वत पर स्वर्गस्थ हुए । मूल : थेरेहितो णं अजरोहणेहितो कासवगुत्तेहितो तत्थ णं उद्दहगणे नामं गणे निग्गए। तस्सिमाओ चत्तारि साहाओ निग्गयाओ छच्च कुलाइं एवमाहिज्जंति । से कि तं साहाओ? एवमाहिज ति-उदुंबरिजिया मासयूरिया मतिपत्तिया सुवन्नप
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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