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________________ भगवान् बलमदेव : शिष्य संपरा २७३ सुभद्रा प्रमुख पाँच लाख चौवन हजार श्रमणोपासिकाओं की उत्कृष्ट संपदा थी। कौशलिक अर्हत् ऋषभ के समुदाय में जिन नही किन्तु 'जिन' के समान चार हजार सात सौ पचास चौदह पूर्वधारियों की उत्कृष्ट संपदा थी । कोशलिक अर्हत् ऋषभ के समुदाय में नौ हजार अवधिज्ञानियों की उत्कृष्ट सपदा थी। कौशलिक अर्हत् ऋषभ के समुदाय में बीस हजार केवलज्ञानियों की उत्कृष्ट केवलज्ञानी-सम्पदा थी। कौशलिक अर्हत् ऋषभ के समुदाय में बीस हजार छ: सौ वैक्रिय लब्धिधारियों की उत्कृष्ट संपदा थी। कोशलिक अर्हत् ऋषभ के समुदाय में ढाई द्वीप में और दोनों समुद्रों में रहते हुए पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रियों के मनोभावों को जानने वाले ऐसे विपलमति मनःपर्यवज्ञानियों की बारह हजार छ: सौ पचास जितनी उत्कृष्ट संपदा थी। कौशलिक अर्हत् ऋषभ के समुदाय में बारह हजार छ सौ पचास वादियों की उत्कृष्ट सपदा थी । कोशलिक अर्हत् ऋषभ के संघ में से उनके बीस हजार अन्तेवासी शिष्य और चालीस हजार आर्यिकाएँ सिद्ध हुई । कोशलिक अर्हत् ऋषभ के समुदाय में बावीस हजार नौ सौ कल्याण गति वाल, यावत् भविष्य में भद्र प्राप्त करने वाले अनुत्तरोपपातिकों की अर्थात् अनुत्तर विमान में जाने वालों की उत्कृष्ट संपदा थी। मूल : उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स दुविहा अंतगडभूमी होत्था, तं जहा-जुगंतकडभूमी य परियायंतकडभूमी य । जाव असंखेज्जाओ पुरिसजुगाओ जुगंतगडभूमी, अंतोमुहुत्तपरियाए अंतमकासी॥१६॥ __ अर्थ-कौशलिक अर्हत् ऋषभ की दो प्रकार की अन्तकृत् भूमि थी। युगान्तकृत् भूमि और पर्यायान्तकृत् भूमि । श्री ऋषभ के निर्वाण के पश्चात् असंख्ययुग पुरुषों तक मोक्ष मार्ग चलता रहा, यह उनकी युगान्तकृत् भूमि है । श्री ऋषभ को केवलज्ञान होने पर अन्तर्मुहूंत के पश्चात् मोक्ष मार्ग चालू हुआ। अर्थात् श्री ऋषभ का केवलीपर्याय अन्तमुहर्त का होते ही मरुदेवा माता ने
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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