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________________ भगवान बमदेव : भरत-बाहुबली का भात-युट भृकुटि तन गई। क्रोध उभर आया। दांतों को पीसते हुए उसने कहा-क्या भाई भरत की भूख अभी तक शान्त नहीं हुई है ? अपने लघु भ्राताओं के राज्य को छीन करके भी उसे सन्तोष नहीं हुआ ! क्या वह मेरे राज्य को भी हड़पना चाहता है। यदि वह यह समझता है कि मैं शक्तिशाली हूँ और शक्ति से सभी को चट कर जाऊँ तो यह शक्ति का सदुपयोग नहीं, दुरुपयोग है। मानवता का भयंकर अपमान है और कुल मर्यादा का अतिक्रमण है। हमारे पूज्य पिता व्यवस्था के निर्माता हैं, और हम उनके पुत्र होकर व्यवस्था को भग करते हैं, तो यह हमारे लिए उचित नही है। बाह-बल में मैं भरत से किसी भी प्रकार कम नही हूँ, यदि वह अपने बड़प्पन को विस्मृत कर अनुचित व्यवहार करता है तो मैं चुप्पी नही साध सकता। मैं दिखा दूंगा भरत को कि आक्रमण करना कितना अनुचित है । भरत विराट् सेना लेकर बाहुबली से युद्ध करने के लिए 'बहली' की सीमा पर पहुँच गये। और बाहुबली भी अपनी छोटी सेना को सजाकर युद्ध के मैदान में आ गया। बाहुबलो के वीर सैनिकों ने भरत की विराट सेना के छक्के छुडा दिये । लम्बे समय तक युद्ध चलता रहा, पर न भरत जीते और न बाहबली हो। हार-जीत का कोई फैसला नहीं हआ। आखिर बाहुबली ने मनुष्यो का यह रक्त बहता देखकर नरसंहार बन्द करके द्वन्द्व युद्ध के लिए आमंत्रित किया ।९१ दृष्टियुद्ध, वाक्युद्ध, बाहुयुद्ध, मुष्टियुद्ध और दण्डयुद्ध निश्चित हुए। सभी में सम्राट भरत पराजित हुए और बाहुबली विजयी हुए। भरत को अपने लघुभ्राता से पराजित होना अत्यधिक अखरा। आवेश में आकर और मर्यादा को विस्मृत कर बाहुबली का शिरोच्छेदन करने हेतु भरत ने चक्र का प्रयोग किया। यह देख बाहुबली का खून उबल गया। बाहुबली ने उछलकर चक्र को पकड़ना चाहा, पर चक्र बाहुबली की प्रदक्षिणा कर पुनः भरत के पास लौट गया । वह बाहुबली का बाल भी बांका न कर सका । यह देख सभी सन्न रह गये। बाहुबली की विरुदावलियों से भू-नभ गूंज उठा। भरत अपने कृत्य पर लज्जित हो गये। भाई भरत की भूल को भुलाने के लिए लाखों कण्ठों से ये स्वर-लहरियां
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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