SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 299
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६१ मयवान शषमदेव : प्रथम मिक्षाचर ज्जवसाणाओ बाहत्तरं कलाओ चोवर्द्धि महिलागुणे सिप्पसयं च कम्माणं तिनि वि पयाहियाए उवदिसइ, उवदिसित्ता पुत्तसयं रज्जसए अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता पुणरवि लोयंतिएहिं जिअकप्पिए० सेसं तं चेव सव्वं भाणियब्वं जाव दायं दाइयाणं परिभाएत्ता जे से गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे चेत्तबहुले तस्स णं चेत्तबहुलस्स अट्टमीपक्खेणं दिवसस्स पच्छिमे भागे सुदंसणाए सिवियाए सदेवमणुयासुराए परिसाए समणुगम्ममाणमग्गे जाव विणीयं रायहाणिं मझ मज्झणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सिद्धत्थवणे उज्जाणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे जाव सयमेव चउमुटिठयं लोयं करेइ, लोयं करित्ता छ?णं भत्तेणं अप्पाणएणं आसाढाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं उग्गाणं भोगाणं राइन्नाणं च खत्तियाणं च चरहिं सहस्सेहिं सद्धि एग देवदूसमादाय मुडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पब्वइए॥१६॥ ___ अर्थ - कौश लिक अर्हत् ऋषभदेव दक्ष थे । दक्ष प्रतिज्ञा वाले, उत्तम रूप वाले, सर्व गुणों से युक्त भद्र और विनीत थे। वे बीस लाख पूर्व तक कुमार अवस्था में रहे। उसके पश्चात् श्रेसठ लाख पूर्व वर्ष तक राज्यवास में रहे। वेसठ लाख पूर्व वर्ष तक राज्य अवस्था में रहते हुए उन्होंने जिस कला में गणित प्रथम है और शकुनरुत अर्थात् पक्षी के शब्द से शुभाशुभ जानने की कला अन्तिम है, ऐसी बहत्तर कलाएँ व महिलाओं के चोंसठ गुण तथा सौ शिल्प ये तीनों चीजें प्रजा के हित के लिए उपदेश की। इन सभी का अध्ययन करवाने के पश्चात् सौ राज्यों में सौ पुत्रों का अभिषेक कर दिया। उसके पश्चात् जिनका कहने का आचार है ऐसे लोकान्तिक देव उनके पास आए। उन्होंने प्रिय वाणी से भगवान को कहा, इत्यादि सभी पूर्व कथन के समान यहाँ भी कहना नाहिए। यावत् वार्षिकदान देकर के, ग्रीष्म ऋतु का प्रथम मास,
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy