________________
कल्प सूम
(६) जीवानन्द वैद्य - वहाँ से व्यवकर धन्नासेठ का जीव जीवानन्द वैद्य बना । उस समय वहाँ पाँच अन्य जीव भी उत्पन्न हुए (१) राजा का पुत्रमहीधर, (२) मत्रीपुत्र सुबुद्धि, (३) सार्थवाह पुत्र पूर्णभद्र, (४) श्रेष्ठीपुत्र गुणाकर ( ५ ) ईश्वरदत्त पुत्र केशव ( जो श्रीमती का जीव था ) इन छहों मित्रों में पयः पानी जैसा प्रेम था ।
२५२
अपने पिता की तरह जीवानन्द वैद्य भी आयुर्वेद विद्या में प्रवीण था । उसकी प्रतिभा की तेजस्विता से सभी प्रभावित थे । एक दिन सभी स्नेही साथ वार्तालाप कर रहे थे कि वहाँ एक दीर्घतपस्वी मुनि भिक्षा के लिए आये । वे कृमि कुष्ठ की भयंकर व्याधि से ग्रसित थे । सम्राट् पुत्र महीधर ने जीवानंद से कहा - मित्रवर ! आप अन्य गृहस्थ लोगों की चिकित्सा करने में दक्ष हैं, पर कृमिकुष्ट रोग से ग्रसित इन तपस्वी मुनि को निहार करके भी उनकी चिकित्सा हेतु प्रवृत्त क्यों नही होते ?
जीवानन्द - मित्र, तुम्हारा कथन सत्य है, पर मेरे पास लक्षपाक तैल के अतिरिक्त अन्य आवश्यक औषधियाँ अभी उपलब्ध नही हैं ।
उन्होंने कहा—- बताइए, क्या औषधियाँ चाहिए ? हम मूल्य देंगे, जहाँ भी उपलब्ध हो सकेंगी, लाने का प्रयास करेंगे ।
जीवानन्द - दो वस्तुएँ चाहिए, रत्न- कंबल, और गोशीर्ष चन्दन ?
पाँचों ही साथी औषधि लाने के लिए एक श्रेष्ठी की दुकान पर पहुंचे । श्रेष्ठी ने कहा- प्रत्येक वस्तु का मूल्य एक-एक लाख दीनार है । वे उस मूल्य को देने के लिए ज्योंही प्रस्तुत हुए, त्योंही श्रेष्ठी ने प्रश्न किया कि ये अमूल्य वस्तुएँ किसलिए चाहिए ? उन्होंने कहा- मुनि की चिकित्सा के लिए । मुनि का नाम सुनकर वे दोनों ही वस्तुएँ बिना मूल्य लिये श्रेष्ठी ने दे दी। वे उन वस्तुओं को लेकर वैद्य के पास गए।
साथियों के साथ ही जीवानन्द वंद्य औषधियां लेकर मुनि के पास गया। मुनि ध्यानमुद्रा मे लीन थे। मुनि की बिना स्वीकृति लिये ही मुनि को आरोग्य प्रदान करने हेतु उन्होंने तेल का मर्दन किया । उष्णवीर्य तैल के प्रभाव