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________________ पुरुषाबानीय अर्हत् पार्श्वनाथ : पूर्व भव २१३ से गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे चित्तबहुले तस्स णं चित्तबहुलस्स चउत्थीपक्खेणं पाणयाओ कप्पाओ वीसं सागरोवमद्वितीयाओ अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वाणारसीए नयरीए आससेणस्स रन्नो वम्माए देवीए पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि विसाहाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं आहारवक्कतीए भववकंतीए सरीखक्कंतीए कुच्छिसि गव्भत्ताए वकते ॥१४६॥ अर्थ-उस काल उस समय पुरुषादानीय अर्हत पार्श्व, जब ग्रीष्म ऋतु का प्रथम मास, प्रथम पक्ष अर्थात् चैत्र मास का कृष्ण पक्ष था, उस चैत्र कृष्णा चतुर्थी के दिन बीस सागरोपम की आयु वाले प्राणत नामक कल्प से आयुष्य पूर्णकर दिव्य आहार, दिव्य जन्म और दिव्य शरीर छूटते ही शीघ्र च्यवन करके इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष की वाराणसी नगरी में अश्वसेन राजा की रानी वामादेवी की कुक्षि में, जब रात्रि का पूर्वभाग समाप्त हो रहा था और पिछला भाग प्रारम्भ होने जा रहा था, उस सन्धिवेला में मध्यरात्रि में विशाखा नक्षत्र का योग होते ही गर्भ रूप में उत्पन्न हुए। विवेचन-कोई भी जीव यकायक तीर्थकर नही बन जाता, किन्तु तीर्थकर बनने के पूर्व उस जीव को लम्बे समय तक साधना करनी पड़ती है। जैसे भगवान महावीर के जीव को सत्ताईस भव पूर्व सम्यक्त्व की उपलब्धि हुई थी वैसे ही भगवान पार्श्वनाथ के जीव को दस भव पूर्व सम्यक्त्व प्राप्त हुआ था। (१) मरुभूति-एक बार भगवान् पार्श्वनाथ का जीव जम्बूद्वीपस्थ भरतक्षेत्र के पोतनपुर में विश्वभूति पुरोहित का पुत्र मरुभूति बना। बड़े भ्राता का नाम कमठ था। पिता के स्वर्गस्थ हो जाने पर कमठ राजपुरोहित बना। मरुभति प्रकृति से सरल, विनीत और धर्मनिष्ठ था। कमठ कर, अभिमानी और व्यभिचारी था। मरुभूति की पत्नी वसुन्धरा के रूप पर वह मुग्ध हो गया। उसकी अभ्यर्थना पर वसुन्धरा भी अपने धर्म से च्युत हो गई।
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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