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________________ भगवान महावीर की पूर्व परम्परा • पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्वनाथ मूल : तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए पंचविसाहे होत्था, तं जहा-विसाहाहिं चुए चइत्ता गभं वकते? विसाहाहिं जाए२ विसाहार्हि मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइए३ विसाहाहिं अणंते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुन केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्न ४ विसाहाहिं परिनिव्वुए५ ॥१४॥ ___ अर्थ-उस काल उस समय पुरुषादानीय' अर्हन्त पार्श्व पंच विशाखावाले थे। अर्थात् उनके पाँचों कल्याणकों में विशाखा नक्षत्र आया हुआ था। जैसे-(१) पार्श्व अरहन्त विशाखा नक्षत्र में च्युत हुए, च्युत होकर गर्भ में आये (२) विशाखा नक्षत्र में जन्म ग्रहण किया (३) विशाखा नक्षत्र में मुण्डित होकर घर से बाहर निकले अर्थात् उन्होंने अनगारत्त्व ग्रहण किया, (४) विशाखा नक्षत्र में उन्हें अनन्त, उत्तमोत्तम, व्याघातरहित, आवरणरहित, सम्पूर्ण, प्रतिपूर्ण केवलज्ञान केवलदर्शन उत्पन्न हुआ, (५) भगवान् पार्श्व विशाखा नक्षत्र में ही निर्वाण को प्राप्त हुए। मल: तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए जे
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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