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मल्मग्रह:शकी प्रार्थना
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श्रमण निम्रन्थ और निग्रंथनियों के सत्कार और सम्मान में उत्तरोत्तर वृद्धि नही होती है।
विवेचन-कहा जाता है कि श्रमण भगवान महावीर के परिनिर्वाण का समय सन्निकट जानकर शकेन्द्र आए और हाय जोड़कर निवेदन किया-'हे नाथ ! आपके गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान के समय में हस्तोतरा नक्षत्र था और इस समय उसमें भस्मक-ग्रह संक्रान्त होने वाला है। आप श्री के जन्म-नक्षत्र में संक्रान्त वह ग्रह दो हजार वर्ष तक आपके श्रमण-श्रमणियों को अभिवृद्धि को कम करता रहेगा। अत: कृपा कर भस्मक-ग्रह जब तक आपके जन्म-नक्षत्र से संक्रमण करे, तब तक आपश्री प्रतीक्षा करें, क्योंकि वह आपको विद्यमानता में संक्रमण कर जायेगा तो आपके प्रबल प्रभाव से स्वत: निष्फल हो जायेगा, अतः एक क्षण तक अपनी जीवन घड़ी को दीर्घ कर रखें जिससे इस दुष्ट ग्रह का उपशम हो जाए।३६२
___ इन्द्र की अभ्यर्थना पर भगवान् ने कहा-हे इन्द्र ! तुम यह जानते हो कि आयु को एक क्षण भर भी न्यूनाधिक करने की शक्ति किसी में नही है। फिर भी तुम शासन प्रेम मे मुग्ध होकर इस प्रकार अनहोनी बात कह रहे हो? आगामी दुषमा काल के प्रभाव से तीर्थ को हानि पहुँचने वाली है। उसमें भावी के अनुसार यह भस्मक-ग्रह भी अपना फल दिखायेगा ।'६३
मुल:
जया णं से खुड्डाए जाव जम्मनक्खत्ताओ वीतिकते भविस्सइ तया णं समणाणं निग्गंथाणं निग्गंथीण य उदिए उदिए पूयासकारे पवत्तिस्सति ॥१३०॥
___ अर्थ-जब वह क्षुद्र क र स्वभाव वाला भस्म-राशि ग्रह भगवान के जन्म नक्षत्र से हट जायेगा तब श्रमण निर्ग्रन्थ व निर्ग्रन्थनियों का सत्कार सम्मान दिन प्रतिदिन अभिवृद्धि को प्राप्त होगा।