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________________ १६२ भगवान महावीर के तर्क प्रधान वेदवाक्यों के अर्थ-समन्वय को सुनकर गौतम के हृदय की गांठ खुल गई। मिथ्या ज्ञान का नशा उतर गया। मानसिक संदेह का निराकरण हो गया। वे श्रद्धा गद्गद् हो गये। प्रभु के चरणों में झुक गये । परम सत्य का दर्शन पाकर कृतार्थ हो गये। पाँच सौ शिष्यों के साथ भगवान् महावीर के शिष्य बन गये। -----अग्निभूति इन्द्रभूति की प्रवज्या के समाचार सुनकर अग्निभूति अपने शिष्यों सहित शास्त्रार्थ के लिए आए । अग्निभूति के मन पर "पुरुष एवेदं सर्व पद्भूतं यच्च भाव्यं उतामृतत्वस्येशानो यदन्ननातिरोहति यदेजति यन जति यद्रे यदु अन्तिके यदन्तरस्य सर्वस्य यदु सर्वस्यास्य बाह्यतः।२५ प्रभृति श्रुतिवाक्यों की छाप थी । वे पुरुषाऽद्वैतवादी थे। किन्तु "पुण्यः पुण्येन, पाप: पापेनः कर्मणा" आदि विरोधी वचनों से पुरुषाऽद्वैतवाद में शंकाशील थे। भगवान् महावीर ने वैदिक वाक्यों के समन्वय से द्वैत की सिद्धि कर उनके संशयों का उच्छेद किया, वे भी प्रतिबोध पाकर छात्र मंडली सहित प्रवजित हुए। -• वायुभूति अग्निभूति के प्रव्रज्या ग्रहण करने के पश्चात् वायुभूति शास्त्रार्थ के लिए चले। उनके दार्शनिक विचारों का झुकाव "तज्जीवतच्छरीवादी" नास्तिकमत की ओर था । 'विज्ञानघन एवंतेभ्योः 'प्रभृति श्रुतिवाक्यों को वे अपने मत का समर्थक मानते थे। किन्तु दूसरी ओर "सत्येन लभ्यस्तपसा ह्येष ब्रह्मचर्येण नित्यं ज्योतिर्मयो हि शुद्धो यं पश्यन्ति धीरा यतयः संशतात्मानः"२६ प्रभृति उपनिषद् वाक्यों से देहातिरिक्त आत्मा की सिद्धि होती थी। यह द्विविध वेदवाणी वायुभूति की शंका का कारण थी। भगवान महावीर ने शरीरातिरिक्त आत्मतत्त्व का विश्लेषण कर शंकाओं का समाधान किया। पांच सौ शिष्यों के साथ उन्होंने भी प्रव्रज्या ग्रहण की।
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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