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________________ साधना काल: १४ नस्थि णं तस्स भगवंतस्स कथइ पडिबंधो भवति । से य पडिबंधे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ। दवओ णं सच्चित्ताचित्तमीसिएसु दव्वेसु । खेत्तओ णं गामे वा नगरे वा अरण्णे वा खित्ते वा खले वा घरे वा अंगणे वा णहे वा । कालओ णं समए वा आवलियाए वा आणापाणुए वा थोवे वा खणे वा लवे वा मुहुत्ते वा अहोरत्ते वा पक्खे वा मासे वा उऊ वा अयणे वा संवच्छरे वा अन्नयरे वा दीहकाल संजोगे वा । भावओ णं कोहे वा माणेवा मायाए वा लोभे वा भये वा हासे वा पेज्जे वा दोसे वा कलहे वा अब्भक्खाणे वा पेसुन्ने वा परपरिवाए वा अरतिरती वा मायामोसे वा मिच्छादसणसल्ले वा। (ग्रं० ६००) तस्स णं भगवंतस्स नो एवं भवइ ॥११८॥ अर्थ-इन पदों की दो संग्रह गाथाएं हैं:-कांस्य वर्तन, शंख, जोव, आकाश, वायु, शरद् ऋतु का पानी, कमल पत्र, कूर्म, पक्षी, महावराह, भारण्ड पक्षी, हस्ती, वृषभ सिंह. पर्वतराज सुमेरु, सागर, चन्द्र, सूर्य, सुवर्ण पृथ्वी, और अग्नि । उन भगवान् को कही पर भी प्रतिबन्ध नहीं था, वे अप्रतिबध विहारी थे। प्रतिबंध चार प्रकार का होता है-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से । द्रव्य से–सचित्त, अचित्त और मिश्र । क्षेत्र से-गाव, नगर, अरण्य, खेत, खलिहान. गृह, आंगन और आकाश । काल से-समय, आवलिका, आन प्राण, स्तोक, क्षण, लव, मुहूर्त, अहोरात्र, पक्ष, महिना ऋतु, अयन, वर्ष, अथवा दूसरा कोई भी दीर्घ काल का संयोग, ऐसा किसी भी प्रकार का सूक्ष्म या स्थूल, लघु या दीर्घकाल का बंधन नहीं होता । भाव से-क्रोध मान, माया, लोभ, भय, हास्य, राग द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, परपरिवाद, अरतिरती, माया मृषावाद मिथ्यादर्शन शल्य । वे इन सभी प्रकार के प्रति बन्धनों से मुक्त हुए । मल: से णं भगवं वासावासवज्जं अट्ठ गिम्हहेमंतिए मासे गामे
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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