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________________ १७२ उस समय पापित्य स्थविर नन्दिषेण वहाँ पर विराज रहे थे। गोशालक ने उनसे भी वाद-विवाद किया। तंबाय से 'कूपिय सन्निवेश' पधारे। वहाँ लोगों ने गुप्तचर समझकर भगवान को पकड़ लिया। अनेक यातनाएं दी और कारागृह में कैद कर लिया गया। "विजया' और 'प्रगल्भा' नाम की परिव्राजिकाओं को परिज्ञात होने पर वे वहाँ पहुँची, और अधिकारियों को भगवान का परिचय दिया। अधिकारियो ने अपनी अज्ञता पर पश्चात्ताप करते हुए भगवान् को मुक्त कर दिया ।२७१ भगवान् ने वहाँ से वैशाली की ओर विहार किया। गोशालक ने भगवान महावीर से कहा-"मुझे आपके साथ रहते हुए अनेक दुःसह यातनाएँ भोगनी पड़ती हैं। पेट की समस्या भी हल नहीं हो पाती। आप इनका निवारण नहीं करते, अतः मैं अब पृथक् विहार करूँगा।" इस बात पर भगवान् मौन रहे । गोशालक ने राजगृह की ओर प्रस्थान कर दिया । ____ भगवान् क्रमशः विहार करते हुए वैशाली पधारे और लुहार के यंत्रालय (कम्मारशाला) में ध्यानस्थ स्थिर हुए। वह लुहार छह मास से अस्वस्थ था। भगवान् के आने के दूसरे ही दिन कुछ स्वस्थता अनुभव होने पर वह अपने यंत्र लेकर यंत्रालय में पहुँचा। वहाँ एकान्त मे भगवान् को ध्यान मुद्रा में देखकर उसने अमंगल रूप समझा और हथोड़ा लेकर महावीर पर प्रहार करने के लिए ज्यों ही वह उधर बढ़ा त्यों ही दिव्य देव-शक्ति से सहसा वही स्तब्ध हो गया ।२७७ वैशाली से विहार कर भगवान् ग्रामक-सन्निवेश पधारे और विभेलक यक्ष के यक्षायतन में ध्यान किया। भगवान् के तपोमय जीवन से यक्ष प्रभावित होकर गुणकीर्तन करने लगा । २७४ --. कूटपूतना का उपद्रव भगवान महावीर ग्रामक सनिवेश से विहार कर शालीशीर्ष के रमणीय उद्यान में पधारे। माघ माह का सनसनाता समीर प्रवहमान था। साधारण मनुष्य घरों में गर्म वस्त्रों से वेष्टित होने पर भी कांप रहे थे, किन्तु उस ठण्डी
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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