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________________ १५२ सव्वसंगमेणं सव्वपगतीहिं सव्वणाडएहिं सव्वतालायरेहिं सब्बोरोहेणं सब्बपुष्पवत्थगंधमल्लालंकारविभूसाए सव्वतुडियसहसण्णिणादेणं महता इड्डीए महताजुतीए महता बलेणं महता वाहणेणंमहता समुदएणं महत्ता वरतुडितजमगसमगप्पवादितेणं संखपणवपडहभेरिझल्लरिखरमुहिहुडक्कदुंदुभिनिग्घोसनादियरवेणं कुडपुरं नगरं मझमज्झणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव णायसंडवणे उज्जाणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छह ॥११३॥ अर्थ-उसके पश्चात् श्रमण भगवान महावीर हजारो नेत्रों से देखे जाते हुए, हजारों मुखों से प्रशंसा किए जाते हुए, हजारों हृदयों से अभिनन्दन प्राप्त करते हुए चले । भगवान् को निहारकर लोग हजारों प्रकार के मनोरथ (सकल्प) करने लगे। भगवान् की मनोहर कांति और रूप को देखकर लोग वैसे ही कांति व रूप की चाहना करने लगे। वे हजारों अंगुलियों से दिखलाए जा रहे थे। भगवान् अपने दाहिने हाथ से हजारों नर-नारियों के प्रणाम को स्वीकार करते हुए, हजारों गृहों की पंक्तियों को पार करते हुए, वीणा, हस्तताल, वादित्र, गाने और बजाने के मधुर व सुन्दर जय-जयनाद के साथ, मधुर मधुर जयनाद के घोष को सुनकर सावधान बनते बनते, छत्र, चामर आदि सभी वैभव से युक्त, अगअङ्ग मे पहिने हुए समस्त आभूषणों की कांति से मण्डित, सम्पूर्ण सेना से परिवृत, हस्ती, अश्व, ऊँट, खच्चर, पालखी, म्याना आदि सभी वाहनों से परिवृत, सम्पूर्ण जन समुदाय के साथ, पूर्ण आदर अर्थात् औचित्य पूर्वक, अपनी सम्पत्ति व सम्पूर्ण शोभा के साथ, सम्पूर्ण प्रकार की उत्कण्ठा के साथ, समस्त प्रजा अर्थात् वणिक, चंडाल, भिल्ल आदि अठारह वर्णो के साथ, सभी प्रकार के नाटक करने वाले व सभी प्रकार के ताल बजाने वाले से संवृत सभी प्रकार के अन्तःपुर तथा फूल गध, माला और अलंकारो की शोभा के साथ सभी प्रकार के वाद्यो के शब्दों के साथ, इस प्रकार महान् ऋद्धि, महान् द्युति, विराट सेना, विशाल वाहन, वृहद् समुदाय और एक साथ बजते हुए वाद्यों की प्रतिध्वनि के साथ, अर्थात् शंख, मिट्टी के ढोल, काष्ठ के ढोल, भेरी, झालर, खरमुखी,
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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