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________________ १४६ कल्प सूत्र तीसे णं दो नामधिज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहा-अणोज्जा इ वा पियदंसणा इ वा ॥१०॥ अर्थ-श्रमण भगवान महावीर की पुत्री काश्यप गोत्र की थी। उसके दो नाम इस प्रकार कहे जाते है । अणोज्जा (अनवद्या) एव प्रियदर्शना। मल: समणस्स णं भगवओ महावीरस्स नत्तुई कासवी गोत्तेणं नीसे णं दो नामधिज्जा एवमाहिज्जति, तं जहा-सेसई इ वा जस्सवई इ वा ॥१०॥ अर्थ-श्रमण भगवान महावीर की दौहित्री (पुत्री की पुत्री) काश्यप गोत्र की थी। उसके दो नाम इस प्रकार कहने मे आते है-शेषवती और यशस्वती। --. अभिनिष्क्रमण मूल: समणे भगवं महावीरे दक्खे दक्खपतिन्ने पडिरूवे आलीणे भदए विणीए नाए नायपुत्ते नायकुलचंदे विदेहे विदेहदिन्न विदेहजच्चे विदेहसूमाले तीमं वासाई विदेहंसि कटु अम्मापिईहिं देवत्तगएहिं गुरुमहत्तरएहिं अब्भणुनाए समत्तपइन्न पुणरवि लोयंतिएहिं जियकप्पिएहिं देवेहिं ताहिं इहाहि कंताहिं पियाहिं मणुन्नाहिं मणामाहि ओरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहि धन्नाहिं मंगल्लाहिं मियमहुरसस्सिरीयाहिं हिययगमणिज्जाहिं हिययपल्हायणिज्जाहिं गंभीराहिं अपुणरुत्ताहिं वग्गृहिं अणवरयं अभिनंदाणा य अभिथुज्वमाणा य एवं वयासी जय जय नंदा ! जय जय भद्दा ! भदं ते जय जय खत्तियवरवसहा ! बुज्झाहि
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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